300 /2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जब उगते हैं सूरज दादा।
करें उजाले का नित वादा।।
देवी उषा साथ में आतीं।
लाल अधर में वे मुस्कातीं।।
पहने लाल शाटिका सादा।
जब उगते हैं सूरज दादा।।
हो जाता है दूर अँधेरा।
जब होता है सुघर सवेरा।।
हटें बुराई नेक इरादा।
जब उगते हैं सूरज दादा।।
जग में फैले श्वेत उजाला।
मिटे अँधेरा काला - काला।।
बिस्तर छोड़ नहीं क्यों जागा?
जब उगते हैं सूरज दादा।।
ज्ञान समान उजाला सारा।
चर-अचरों का दिव्य सहारा।।
रहे नहीं नर कोई नादां।
जब उगते हैं सूरज दादा।।
साफ - सफाई का इंगित है।
ज्ञानी जन को नित वंदित है।।
उचित न कम ही उचित न ज्यादा।
जब उगते हैं सूरज दादा।।
शुभमस्तु !
28.06.2025●2.45प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें