रविवार, 1 जून 2025

शिक्षा-माफिया' [अतुकांतिका]

 237/2025

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


क्या कुछ नहीं

हमारे शिक्षालय में

किताबें कॉपियाँ

पैंन पेंसिल पटरी

यहाँ तक कि

जूते मोजे और कपड़े भी

मिल जाते हैं,

शर्त बस इतनी है कि

सब कुछ एक ही

छत के नीचे हाजिर है,

कहीं बाहर जाने की

आवश्यकता नहीं है,

जहाँ तक 

पढ़ाई - लिखाई की बात है

उसके ट्यूटर की

बढ़िया व्यवस्था है,

बस यदि यहाँ कुछ नहीं है

तो वह एक ही चीज है

जिसे कहते हैं शिक्षा।


हमारे शिक्षालय का बड़ा 

नाम है अखबारों में 

शत -प्रतिशत अंक लाते हैं,

अब आपसे क्या छिपाना

कि हमारे टीचर 

परीक्षा में पूरे  'मददगार'  हैं,

सभी प्रश्नों के सही-सही

उत्तर लिखवाते हैं,

इसीलिए तो हम 

विद्यालय के रिजल्ट पर

मूँछें तानकर इतराते हैं।


हम कोई ठेकेदार नहीं 

किसी को शिक्षित बनाने के

हम तो 'शिक्षा माफिया' हैं

धंधेखोर हैं,

पैसा कमाना हमारा लक्ष्य है

किसी के चरित्र और शिक्षा से

हमें क्या लेना -देना,

पैसा लाओ और अंक पाओ

हम कोई समाज सुधारक भी नहीं

भाड़ में जाए समाज और देश ,

हमें तो बस पैसा कमाना है

देश के नेताओं की भावना का

हम पूरा सम्मान करते हैं,

वे भी तो नहीं चाहते

कि देश के नागरिक योग्य बनें

बस वोट डालें और

हमारी कुर्सी बहाल रखें।


देश सोता रहे 

इसी में हम नेताओं और

शिक्षा माफियाओं की भलाई है,

यदि देश जाग गया

पढ़ - लिख कर योग्य बन गया

तो हम नेताओं और धनाधीशों को

भला पूछेगा  कौन ?

ये पढ़े-लिखें अनपढ़ ही तो

हमारी ताकत हैं,

जो 100 में 100 अंक पाते हैं

और कम्पटीशन में

मुँह की खाते हैं,

पीठ के बल पड़े नजर आते हैं।


शुभमस्तु !


22.05.2025 ● 9.00प०मा०

                      ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...