227/2025
*©शब्दकार*
*डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'*
शादी ब्याह बरात
जिंदगी के रंगों का मेला।
दिन के बाद रात आती है
सुबह हो रही साँझ
कभी रंग हैं रंग - रंग के
कभी बजे शुभ झाँझ
कभी नाचता कभी कूदता
कभी खेल तू खेला।
नहीं सभी दिन हुए बराबर
मत रँग रस में भूल
कभी महकते पाटल के दल
काँटा कभी बबूल
तट पर बैठ देखता लहरें
कभी सुनामी रेला।
सूरज चढ़ता कभी शून्य में
वही साँझ को ढलता
रात अँधेरी बिता असूझी
प्रातः वही निकलता
धूमधाम कुछ पल की बन्दे
सबने इसको झेला।
शुभमस्तु !
06.05.2025● 5.45 आरोहणम मार्तण्डस्य
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