241/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हरियाली का सागर उमड़ा
वट का वृक्ष विशाल।
दूर-दूर तक धान झूमते
अंक छिपाए गेह
एक बूँद छूती न धरा को
बरस पड़े यदि मेह
शांति सौख्य का आश्रय नीले
नभ को देता ताल।
कितने जीव-जंतु पशु-पक्षी
तरुवर तर आनंद
चह-चह चहक रहीं हैं चिड़ियाँ
बहे पवन मकरंद
लगता कभी अर्द्ध गोलाकृति
ललना का यह गाल।
पथिक ठहर जाता पल दो पल
मिले उसे सुख शांति
कुदरत का बन चमत्कार वट
रखे न किंचित भ्रांति
पादप सघन सुशोभित अरबों
गुँथी परस्पर डाल।
शुभमस्तु!
27.05.2025●9.45आ०मा०
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9:49 am
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