298 /2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हवा न समझें हवा हवाई।
जीवन की वह एक दवाई।।
बिना हवा के प्राण हमारे।
मरते तड़प - तड़प बेचारे।।
शुद्ध श्वास ही लेना भाई।
हवा न समझें हवा हवाई।।
प्राण वायु ऑक्सीजन होती।
वहीं प्राण के चमकें मोती।।
तन में इसकी है प्रभुताई।
हवा न समझें हवा हवाई।।
दस होते हैं प्राण हमारे।
विविध अंग में बसते सारे।।
जिनकी महिमा जग में छाई।
हवा न समझें हवा हवाई।।
वायु अपान बिगड़ती तन की।
शांति बिगड़ती है छन- छन की।।
बाहर नहीं तनिक भी धाई।
हवा न समझें हवा हवाई।।
स्वच्छ रखें परिवेश हमारा।
हवा शुद्ध हो मनुज उबारा।।
बात 'शुभम्' ने यों समझाई।
हवा न समझें हवा हवाई।।
शुभमस्तु !
28.06.2025●1.15प०मा०
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