रविवार, 29 जून 2025

हवा न समझें हवा हवाई [बालगीत]

 298 /2025

    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हवा   न    समझें     हवा   हवाई।

जीवन   की    वह    एक  दवाई।।


बिना   हवा   के     प्राण    हमारे।

मरते       तड़प -  तड़प    बेचारे।।

शुद्ध    श्वास    ही    लेना    भाई।

हवा  न     समझें    हवा   हवाई।।


प्राण   वायु     ऑक्सीजन    होती।

वहीं   प्राण   के     चमकें    मोती।।

तन    में    इसकी     है    प्रभुताई।

हवा   न   समझें     हवा     हवाई।।


दस   होते      हैं    प्राण      हमारे।

विविध  अंग    में    बसते    सारे।।

जिनकी    महिमा    जग   में  छाई।

हवा  न     समझें      हवा   हवाई।।


वायु  अपान  बिगड़ती    तन   की।

शांति बिगड़ती है  छन-  छन की।।

बाहर  नहीं    तनिक    भी    धाई।

हवा  न   समझें     हवा     हवाई।।


स्वच्छ   रखें     परिवेश    हमारा।

हवा  शुद्ध   हो    मनुज   उबारा।।

बात 'शुभम्'   ने    यों    समझाई।

हवा  न    समझें   हवा    हवाई।।


शुभमस्तु !


28.06.2025●1.15प०मा०

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