266/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
घूमते रहने से मन में
एक ही बात
बन जाती है तनाव।
खाली नहीं बैठता
यों तो कभी
मेरा चंचल मन
उधेड़बुन में ही
लगा रहता है
दिखाता ठनगन
नकार और सकार में
छिड़ती है जब जो रार
बन जाती है तनाव।
कभी ऊपर -ऊपर
सतह पर
उताराता है फूल
भार हीन लगता है
बिना दबाव
न कहीं भी धूल
करती है बड़ा उपकार
नहीं बन पाती है तनाव।
तनाव नहीं हैं जहाँ
परमानंद है
स्वर्ग के समान है
अनचाहे चले आते हैं वे
मन की प्रकृति है
तानी हुई कमान है
इसी का नाम जीवन है
जीवन का संघर्ष है
जो बन जाती है तनाव।
शुभमस्तु !
20.06.2025● 12.15प०मा०
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