मंगलवार, 24 जून 2025

लेश न शेष चरित्र है [ दोहा गीतिका ]

 270/2025


    


©शब्दकार

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अपनी  करनी से करे,मानव निज उपहास।

सहज  सरल जीवन नहीं,उसको आए रास।।


तन  को  ऐसे  छोड़ते,घोड़े  ज्यों बिन  बाग,

घूरे   पर   चरता  रहे,  भले  खा  रहा  घास।


शेष  न  लेश  चरित्र है, नैतिकता म्रियमाण,

आदर जननी - तात का, शेष न उनके पास।


पातिव्रत है  वह कौन सी,चिड़िया का है नाम,

जीवन  जो  उज्ज्वल  करे,फैले नया उजास।


मुस्कानें   सोनम   कई,   फैलातीं व्यभिचार,

राज तभी खुलते सभी,किंचित रहे न  आस।


मानुस तन मिलता नहीं,सहज नहीं नर योनि,

जीव  करे  सत्कर्म ही,प्रतिपल कठिन प्रयास।


'शुभम्' कीट खग ढोर से,भिन्न मनुज की जात,

भटके लाखों योनियाँ, मिलती मनुज   सुवास।


शुभमस्तु !


23.06.2025●4.30आ०मा०

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