मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

जाड़े का परिहार करें [ गीत ]

 707/2025


           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आओ पहले

आग जलाकर

जाड़े का परिहार करें।


शीत  सताए

तन-मन काँपे

काम नहीं  अपना चलना 

पहले करें

इकट्ठी लकड़ी

आग जला रोकें कँपना

अगियाना

अब बना हमारा

गर्मी का संचार करें।


पकड़ी जाती 

नहीं हाथ में 

इतनी ठंडी टंकी है

हाथ सेंकना

प्रथम जरूरी

करना अपने मन की है

देखो उधर

कुहासा छाया

लपटों का हम वार करें।


नहीं देह पर

कपड़े इतने

ऊनी शॉल नहीं साड़ी

दूध बाँटना

रोज हमें ही

गाँव-गाँव ऑंगनबाड़ी

मौसम बिगड़ा

काम रुके क्यों

हम-तुम यही विचार करें।


शुभमस्तु !


02.12.2025●5.आ०मा०

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भजन [ चौपाई ]

 706/2025


    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


प्रभु  का    भजन    करे  सब  पाए।

ध्यान    मग्न    हो    प्रीति  जगाए।।

भजन  भाव  में  सब    दुख   नाशे।

मानव  जीवन     कर्म        तराशे।।


राम  भजन   रत    नित   हनुमंता।

भजते हैं   सब      साधु   सुसंता।।

इष्ट देव  को    नित   हम     ध्याएँ।

ज्ञान   यजन  में     चित्त    लगाएँ।।



शंभु-भजन   हरि  नियमित  करते।

हरि के भजन    लीन   शिव रहते।।

भक्ति  भाव  को    भजन   जगाए।

हरि सुमिरन    की    गंग    नहाए।।


प्रभु को   सदा     हृदय    में    धारें।

बिना   याचना      पाप      निवारें।।

यही  भजन   है  अच्छा   सबसे।

रीति  चली है    ये     युग-युग   से।।


माता - पिता   और    गुरु     न्यारे।

भजें इन्हें     संतति     सब  प्यारे।।

भजन पिता - माता   की   सेवा।

सब सुख   दायिनि    दात्री   मेवा।।


भजन-कीरतन      में   चित  लाएँ।

सुख   साधन का    साज   सजाएँ ।।

बार -बार     गुण   कथन   कराना।

श्रेष्ठ  भजन     है   युगों     पुराना।।


'शुभम्'  भजन  की महिमा गाए।

बार -बार      तुमको      समझाए।।

भजन  बिना  भव   पार   न   होना।

योनि-योनि    में    पड़ता      रोना।।


शुभमस्तु !


01.12.2025●6.15 प०मा०

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सकल विश्व में मचती हलचल [ गीतिका ]

 705/2025


      

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सकल   विश्व   में  मचती  हलचल।

शांति    हनन  होता  है     हरपल।।


तन-मन     से   बेचैन        आदमी,

उसे   न पड़ती पल भर   को कल।


गर्त    पतन  का  विषम   गहनतम,

रहा  प्रगति का अब   सूरज   ढल।


सिंधु  शरण  में    सरिता  प्रसरित,

नित्य   निरंतर   कलकल है  जल।


सीधी   चाल   न    चले     आदमी,

वक्र  हुए हैं    मस्तक     के   बल।


नगरपालिका         वाले      सोते,

बहें  सड़क पर  अविरल   ये  नल।


'शुभम् '   तीसरा    नेत्र   खुला  है,

निखिल  जगत में   रुद्र   अमंगल।


शुभमस्तु !


01.12.2025●5.00आरोहणम मार्तण्डस्य।

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तन-मन से बेचैन आदमी [ सजल ]

 704/2025


         

समांत          : अल

पदांत           : अपदांत

मात्राभार      :  16

मात्रा पतन   : शून्य


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सकल   विश्व   में  मचती  हलचल।

शांति    हनन  होता  है     हरपल।।


तन-मन     से   बेचैन        आदमी।

उसे   न पड़ती पल भर   को कल।।


गर्त    पतन  का  विषम   गहनतम।

रहा  प्रगति का अब   सूरज   ढल।।


सिंधु  शरण  में    सरिता  प्रसरित।

नित्य   निरंतर   कलकल है  जल।।


सीधी   चाल   न    चले     आदमी।

वक्र  हुए हैं    मस्तक     के   बल।।


नगरपालिका         वाले      सोते।

बहें  सड़क पर  अविरल   ये  नल।।


'शुभम् '   तीसरा    नेत्र   खुला  है।

निखिल  जगत में   रुद्र   अमंगल।।


शुभमस्तु !


01.12.2025●5.00आरोहणम मार्तण्डस्य।

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...