707/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आओ पहले
आग जलाकर
जाड़े का परिहार करें।
शीत सताए
तन-मन काँपे
काम नहीं अपना चलना
पहले करें
इकट्ठी लकड़ी
आग जला रोकें कँपना
अगियाना
अब बना हमारा
गर्मी का संचार करें।
पकड़ी जाती
नहीं हाथ में
इतनी ठंडी टंकी है
हाथ सेंकना
प्रथम जरूरी
करना अपने मन की है
देखो उधर
कुहासा छाया
लपटों का हम वार करें।
नहीं देह पर
कपड़े इतने
ऊनी शॉल नहीं साड़ी
दूध बाँटना
रोज हमें ही
गाँव-गाँव ऑंगनबाड़ी
मौसम बिगड़ा
काम रुके क्यों
हम-तुम यही विचार करें।
शुभमस्तु !
02.12.2025●5.आ०मा०
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