मंगलवार, 9 दिसंबर 2025

अस्त्र-शस्त्रों में मग्न दुनिया [ व्यंग्य ]

 723/2025


 अस्त्र-शस्त्रों में मग्न दुनिया

 [ व्यंग्य ] 

 © व्यंग्यकार

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 सर्व प्रथम अपने सभी देवी- देवताओं को नमन वंदन और प्रणाम करने के बाद अपनी एक महत जिज्ञासा को उनके समक्ष रखता हूँ।बाहर से आप सभी इतने सजे -संवरे ,सुंदर,सौम्य,वंदनीय, नमनीय ,काम्य,प्रणम्य और रम्य प्रतीत होते हो; प्रतीत होता है कि आप सभी अपने भीतर से उतने ही भयभीत,शंकित और आतंकित दिखाई देते हो। आपको भला किससे डर है जो इतने अस्त्र -शस्त्र लादे हुए हर समय ऐसे दिखते हो,जैसे किसी मोर्चे पर युद्ध छिड़ा हुआ हो,जहाँ आपको आत्मरक्षार्थ अथवा किसी अन्य की सेवार्थ महासंग्राम करना हो। अपने प्रातः स्मरणीय देवी -देवताओं से यह प्रश्न हमारे बहुत से अंधभक्तों को आपत्तिजनक लग सकता है।यदि उन्हें ऐसा कुछ लगता हो,तो वे ही इसका जवाब देने के लिए मैदान में आ जाएँ।केवल कोरे अंध विश्वास से काम नहीं चलेगा।सोचने और विचारने की बात तो है ही। यदि इस मामले में हम भक्तगण कुछ कर सकते हों ,तो क्यों न करें और सभी देवी -देवताओं को उसी प्रकार अभय प्रदान करें ,जिस प्रकार वे हमारे भय का निवारण करते हैं । हमारे संकट हर्ता हैं।दुख मोचक हैं, सर्व बाधारोधक हैं।बुद्धि शोधक हैं। दुःख-विपत्ति शोषक हैं।विवेक बोधक हैं। कष्ट रोधक हैं। जब वे रात -दिन हमारी रक्षार्थ खड़े हैं तो हम भी उनके कष्ट निवारणार्थ उनकी दहलीज पर आ पड़े हैं। 

 देवी- देवताओं में सर्व प्रथम पूज्य गणेश भगवान के हाथ में अंकुश अथवा एक फंदा सुशोभित हो रहा है। त्रिदेवों में प्रथम ब्रह्मा जी के हाथों में ब्रह्मास्त्र ,विष्णु भगवान के हाथों में सुदर्शन चक्र और गदा ,शंकर जी के हाथ में त्रिशूल और पाशुपास्त्र शोभायमान है। हनुमान जी गदा और बलराम जी हल धारण करते हैं।दुर्गे माता त्रिशूल,तलवार ,पाश और भाला लिए हुए विराजमान हैं।इंद्र भगवान वज्राधारी हैं तो भगवान कार्तिकेय भाला लिए हुए हैं। एक माता सरस्वती ही हैं जो शांति से वीणा बजा रही हैं और श्रीकृष्ण भगवान चैन से वंशी की मधुर ध्वनि गुंजा रहे हैं।उन्हें भी आवश्यकता पड़ने पर चक्र सुदर्शन उठाना पड़ता है। 

 अस्त्र-शस्त्रों का यह शौक बहुत आदि काल से प्रचलन में होने का परिणाम है कि दुनिया के सभी देशों में अस्त्र शस्त्रों के भंडारण की होड़ लगी हुई है। जो चतुर और समझदार देश हैं, वे अपने मिसाइल, अणुबम, हाईड्रोजन बम आदि छिपाकर रखे हुए हैं और जो ओछी मानसिकता के देश हैं,वे गली के शैतान बच्चों की तरह बमों से दुनिया को डरा रहे हैं। यहाँ वहाँ पर आतंक फैला रहे हैं। 

  व्यक्ति को अपने पड़ौसी से खतरा बना हुआ है। कोई किसी से कम नहीं रहना चाहता ,इसलिए वे हथियार प्रदर्शन करते हैं। यहाँ तक कि खुशी के अवसर पर भी हथियारों की आवाज से अपनी ताकत दिखाने में कम नहीं रहना चाहते। जो लोग देवी देवताओं और भगवान के साकार स्वरूप को नहीं मानते ,उनमें अस्त्र -शस्त्र प्रदर्शन और उनके संचालन की प्रेरणा तो अंततः हमारे देवी -देवताओं से ही मिली होगी।भगवान श्रीराम को अपने धनुष बाणों से रावण का संहार करना पड़ा।भगवान श्रीकृष्ण ने बिना हाथियार ही शकटासुर, अघासुर,बकासुर, केशी,व्योमासुर, नरकासुर,तृणावर्त,कंस, पूतना ,वत्सासुर, अरिष्टासुर,प्रलम्बासुर आदि का संहार कर डाला।इसी प्रकार माता दुर्गा ने महिसासुर, शुम्भ, निशुम्भ,चण्डमुण्ड ,धूम्रलोचन ,रक्तबीज आदि का संहार किया ,तब से उन्हें आत्मरक्षार्थ अस्त्र शस्त्र रखना अनिवार्य हो गया। क्योंकि महान हस्तियों के अनेक शत्रु अनायास ही बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो जाते हैं और किसी दुश्मन से पराजित हो जाना यों भी प्रतिष्ठा के ख़िलाफ़ होता है।

 देवी -देवताओं की यह अस्त्र -शस्त्र धारण करने की परंपरा हमें सिखाती है कि दुनिया दुश्मनों से भरी हुई है,कब कौन कहाँ घात लगाए आघात की तैयारी में बैठा हो; पता नहीं लगता,क्योंकि यहाँ आस्तीन में पाले गए साँप ही अधिक घातक सिद्ध हुए हैं।शिवजी भगवान के साँपों ने तो कभी धोखा नहीं दिया किंतु आदमी रूपी साँप कब क्या कर दे, कुछ भी कहा नहीं जा सकता।विष्णु भगवान युग- युग से शेषशायी हैं,किन्तु उन्हें भी कोई खतरा नहीं। परमात्मा ने आदमी से घातक और कोई जीव पृथ्वी पर बनाया ही नहीं,जो स्वजाति का संहारक बना हुआ है।ये दुनिया कमजोर को ही कमजोर समझकर दबाती है,इसलिए स्वयं को स्वावलंबी और सुदृढ़ दिखाने के लिए कुछ ऐसा प्रयास आवश्यक है ,जिससे कोई किसी को चीनी की तरह घोलकर न पी जाए। यह अस्त्र-शस्त्र प्रदर्शन भी इसी परंपरा और अनुकरण का परिणाम है। 

 शुभमस्तु ! 

 09.12.2025●8.00आ०मा०

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