741/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जनक ने
निज अंक में ले
नेह का संबल सहेजा।
आत्मा का
रूप संतति
आत्मवत ही पालना है
चाहता
जैसा पिता जो
रूप में वह ढालना है
भाव है
मन में यही कुछ
सौंप दूँ सुत को कलेजा।
मैं उठाऊँ
कष्ट कितने
पुत्र की रक्षार्थ भारी
हो बड़ा
आगे बढ़े वह
कर्म की करता सवारी
कष्ट हो
मुझको भले ही
पुत्र का छीजे न रेजा ।
निज पुत्र की
ये मुस्कराहट
शांति देती है हृदय को
बल मुझे
मिलता अकूता
समझता
भावी उदय को
चाहता है
हर पिता यह
पुत्र सूरज -सा उगे जा।
शुभमस्तु !
16.12.2025● 8.15 आ०मा०
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