727/2025
'
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मानवीय 'धी' भी एक चमत्कार है।इसके चमत्कारों का कोई अंत नहीं है। और तो और इसने दूध में से अपने ही जैसी की खोज कर डाली;जिसे सारा संसार 'घी' के नाम से जानता है। दूध तो दूध था ही ,अब वह चाहे माँ का हो या गाय भैस या बकरी आदि चार या द्विस्तनीय जंतुओं का।दूध तो अंततः दूध है,जो संतान के लिए अमृत है। सम्पूर्ण आहार है।यह दूध ही है ,जो मानव को इतना प्रिय सिद्ध हुआ कि उसने माँ के स्तन से उसका स्वाद और महत्त्व समझने के बाद दूध पर रिसर्च ही कर डाली। माँ का दूध छूटा तो वह अन्य जन्तुओं के दूध में स्वाद और अपने को आबाद करने के सूत्र खोजने ही नहीं लगा ,बल्कि खोज ही डाले।दूध का स्वाद उसे इतना भाया कि उसे दैनिक जीवन का अहं हिस्सा ही बना डाला।उसकी पूर्ति में ह्रास हुआ तो चाय का अविष्कार हो गया और चाय उसके दैनिक जीवन का अहं स्वाद बन गई।किसी तरह दूध को अपने अंदर ले लेना उसका उद्देश्य बन गया और अब वह बच्चों, बूढ़ों, जवानों ,स्त्रियों और पुरुषों की पहली पसन्द बन गई। आज इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि चाहे आपके घर में गाय भैंस या बकरी भले ही न हो,पर दूध अवश्य मिल जाएगा। इसकी प्राप्ति के लिए सुबह शाम लोग सड़कों पर दूध लेने जाते और आते हुए मिल जायेंगे। यह कार्य भी उसकी दैनिकी का अहं भाग बन गया है। यह दूध के महत्त्व की अनिवार्यता ही है कि दूध का औद्योगिकरण हो गया ।उसकी अनेक डेरियाँ खुल गईं ,जहाँ दूध के व्यापार ने व्यावसायिक रूप धारण कर लिया। यहाँ तक कि कुछ कम्पनियों ने सूखा दूध भी निरजलीकृत करके उसे संरक्षणीय और सूखा बना दिया। मानवीय धी के लिए यह भी कोई कम चमत्कार की बात नहीं है। तभी तो कहते हैं कि आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। आदमी की इस अदृश्य 'धी' ने ऐसे न जाने कितने अविष्कार कर डाले हैं। ऐसे ही कुछ मानवीय 'धी' के अविष्कारों की चर्चा करना हमारे इस लेख के अधीन है।
मानवीय 'धी' वह मूल तत्त्व है,जिससे संसार के बड़े-बड़े चमत्कार हुए हैं।'धी' के परिश्रम ने घी की खोज कर डाली। दूध से दही ,दही से मट्ठा और उसे मथकर नवनीत और नवनीत का भी सार तत्त्व 'घी' नमूदार हुआ। इस घी ने तो और भी आगे बढ़कर रसना के स्वाद के क्षेत्रफल को वृहत विस्तार ही दे दिया और अनेक पूड़ी पकवान और मिष्ठान्न अस्तित्व में आए। यह सब मानवीय 'धी' की लीला का लीलाधाम है। जब यह देखा गया कि यह घी तो एक विचित्र पदार्थ है जो बर्फ की तरह जम जाता है और ऊष्मा के संपर्क से पानी -पानी हो जाता है।जाड़े की ऋतु में तो घीदानी से निकालना भी टेढ़ा होने लगा तो उसे अपनी अँगुली टेढ़ी करनी पड़ी। अब अँगुली को टेढ़ी करने की एक मर्यादा है,यदि अँगुली अपनी मर्यादा भंग करे तो उसे भौतिक और दैहिक हानि हो सकती है,इसलिए इस धी ने अँगुली की यंत्रिकता को चम्मच और चमचों की यंत्रिकता में बदल डाला। इससे पहले चमचों की खोज नहीं हुई थी। जब चम्मचों और चम्मचियों क़ी खोज हो ही गई तो नेताओं ने भी उनका सदुपयोग करने की सोची और सोचा ही नहीं ,उसे बखूबी कार्यान्वित भी कर दिया और आप देख रहे हैं कि देश की सारी राजनीति चमचों और चम्मचियों के कंधों पर होकर नीचे उतर रही है। ये चम्मच और चम्मचियाँ भी इसी धी जन्य उत्पाद हैं। अब घी निकालने के लिए अँगुली टेढ़ी करने की आवश्यकता नहीं थी, बस एक चम्मच उठाओ और जरूरत के अनुसार घी को दाल या सब्जी में गिराओ और स्व धी और भोजन का स्वाद सुस्वाद बनाओ।
'धी' और 'घी' की शाब्दिक संरचना में कितनी अधिक समानता है ,यह किसी से छिपा नहीं है। बस 'धी' की शिरोरेखा को बंद किया कि वह घी बन गया ।यदि 'धी' का मुख खुला रह गया तो तो द्रव रूप पदार्थ बह नहीं जाएगा ,इसलिए 'धी 'ने उसका मुँह बंद रखना ही उचित समझा। अब 'धी' से घी बन चुका था। यहाँ तक की यात्रा तय करने के लिए इस 'धी' को कितने पापड़ बेलने पड़े होंगे कौन जाने ! तब 'घी' जैसा अमृत और सार तत्त्व निकल कर बाहर आया। इसी बीच एक कहावत यह भी उभर कर प्रत्यक्ष हुई कि मक्खन खाने से ज्यादा लाभप्रद मक्खन होता है और इस बात को आज के राजनेताओं, चमचों, चमचियों और राजनीति ने सर्वसिद्ध कर दिया है। अब हाथ कंगन को आरसी क्या ,पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या कहावत इसका जीवंत प्रमाण है।
जब 'धी' का इतना महत्त्व बढ़ा तो इसका महत्त्व और अर्थ विस्तार हुआ ,जो स्वाभाविक था। 'धी' शब्द का प्रयोग कालांतर में पुत्री के लिए होने लगा। यह वही 'धी' है, जो अगली मानवीय पीढ़ियों की जननी है। इससे यह कदापि न समझें कि इससे पुत्र का महत्त्व और अस्तित्व कम हो जाता है। वह ही उस 'धी' रूपी स्त्री का पूरक हैं। 'धी' ही धारणा ,ध्यान और गहन सोच और चिंतन का रूप है। यही हमारे गायत्री मंत्र का 'धियः' है ,जो सद्बुद्धि का वाचक है। 'धी' ही वस्तुतः 'धरना' अथवा 'धारणा' है, जो प्रत्यक्षतः वाक़् अथवा वाणी से जुड़ा हुआ है। इसी वाणी अथवा वाक़् से काव्य है ,साहित्य है ,संगीत है तथा इनसे जुड़ा हुआ और भी बहुत कुछ 'धी' का चमत्कार है।
यह मानवीय 'धी' ही है ,जिसने इस व्यापक ब्रह्मांड में भू लोक को एक नए संसार में बदल दिया है। मनुष्य वानरों की संतति नहीं है,यदि ऐसा होता तो जो वानर आज जिस रूप में हैं,वे मनुष्य क्यों नहीं बन गए।यह 'धी' रूपी ईश्वरीय चमत्कार केवल मनुष्य मात्र की सम्पति है, जिसे जितने अधिक व्यापक स्वरूप में सकारात्मक बनाया जाएगा ,वह उसके लिए ही नहीं जीव मात्र के लिए भी उतना ही उपादेय और कारगर सिद्ध होगा।मानवीय 'धी' ने प्रकृति से समन्वय और सामंजस्य स्थापित करते हुए वर्तमान संसार का निर्माण किया है। हमारी आकांक्षा है कि यह सम्पूर्ण सृष्टि के लिए सकारात्मक सिद्ध हो।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाक भवेत्।
शुभमस्तु !
11.12.2025●4.00 आ०मा०
●●●
[4:50 pm, 11/12/2025] DR BHAGWAT SWAROOP:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें