711/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
न आने का पता
कि कब आना है,
न जाने का पता
कि कब जाना है।
आता है तू
उसकी इच्छा से,
जाता भी तू
उसी की इच्छा से,
तेरा क्या
तू तो पेंडुलम है
आने-जाने के मध्य का।
दोलन भी
उसी की इच्छा से,
बोलन भी
उसकी इच्छा से,
तू उसकी
इच्छा का दास है।
सोद्देश्य है तेरा
आना -जाना,
बस उसी से
मतलब रख,
आने -जाने के
बीच का
स्वाद चख।
नियंता है वह
तू नियंत्रित,
पता नहीं
कब दोलन
रुक जाए,
तेरे दोलनों का पथ
कब बदल जाए
कुछ भी नहीं पता,
सब कुछ अनिश्चय।
शुभमस्तु !
04.12.2025 ●3.45 प०मा०
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