730/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
भ्रम की धुरी पर
घूमता हुआ संसार
मिथ्या को सच
मानता हुआ
दोलित है,
आंदोलित है।
न यह सच है
न वह सच है,
बस मान्यता है
कि क्या लगता सच है।
सब अपने- अपने
सच में जी रहे हैं
कोई सुखमय
कोई दुखमय
मीठे- खट्टे रस
पी रहे हैं।
भ्रम का पर्दा हटा
कि गर्दा छंटा
मान्यता का मीटर
बढ़ा या घटा,
बस यही खेल जारी है,
भ्रम में भ्रमित
ये दुनिया सारी है।
पेंडुलम बना हुआ है
हर आदमी- औरत
अपनी एक
भ्रमण रेखा का,
वही जिंदगी का
मक़सद है
फ़लसफ़ा है।
शुभमस्तु !
12.12.2025● 5.45 आ०मा०
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