721/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
करो न राधे मन की चोरी।
हम फोड़ेंगे नहीं कमोरी।।
बोले कृष्ण मिलीं पथ राधा।
नेह- तीर प्रेयसि पर साधा।।
अपना काम नहीं है चोरी।
दधि की छोड़ें नहीं कमोरी।।
करनी पड़े भले बरजोरी।
इतना ध्यान रखो ब्रज - गोरी।।
दधि माखन हमको अति भावे।
जब देखें मन अति ललचावे।।
हमें न आए कभी ठगौरी।
बतलातीं हम करते चोरी।।
चारा सड़क ईंट की चोरी।
चोर न कहता उनको भोरी।।
कारागारों में रम जाए।
असली चोर वही कहलाए।।
होते चोर न पकड़े जाते।
दधि से चींटी बाहर लाते।।
चोर बताती हमको गोपी।
मम चोरी की खोली कॉपी।।
सभी शिकायत माँ से करतीं।
चोर बताने में कब डरतीं!!
नहीं काम है अपना चोरी ।
कभी- कभी करता बरजोरी।।
गोपी कहे भले नँदलाला।
चोर कहे चोरों की खाला।।
चोरी कभी करे क्यों कान्हा।
मेरा लाड़ लड़ैता नान्हा।।
शुभमस्तु !
08.12.2025●9.30आ०मा०
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