722/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हाथों हाथ
नहीं दिखता है
मौसम की सित चादर।
पौष माघ की
शीत कड़कती
तरुवर मौन खड़े हैं
बढ़ा कुहासा
हवा बंद है
काँपें बड़े- बड़े हैं
बाइक चला
जा रहा कोई
दिखता नहीं उजागर।
हिलता नहीं
एक भी पल्लव
टप-टप आँसू रोया
आलू बैंगन
और टमाटर
खेत चने का सोया
किट-किट बजते
दाँत ठंड से
काँप रहे थिर डागर।
सूरज देव
कहाँ जा बैठे
नहीं चमकती धूप
सिकुड़े पंख
कबूतर बैठे
चहक रहे हैं कूप
नमन करे
पिड़कुलिया गाती
गीत राम के सादर।
शुभमस्तु !
08.12.2025●11.45 प०मा०
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