शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025

भ्रम [ व्यंग्य ]

 729/2035


 ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 'भ्रम' में बड़ा सुख है ; और 'भ्रम' ही बहुत बड़ा दुःख है। यह सारा संसार भ्रम में जी रहा है और नित्य सुख और आनंद के घूँट पी रहा है। बस किसी जीव का भ्रम बना रहना चाहिए, जिस पल उसका भ्रम टूटा कि सब गुड़ गोबर हुआ। इस छोटे से भ्रम की बड़ी महिमा है। 'भ्रम की टाटी जबै उड़ानी माया रहे न बाँधी' यह उक्ति महात्मा कबीरदास सच ही कह गए हैं। यह भ्रम ही है,जिसके कारण संसार गतिशील है। इसे आप एक ऐसी धुरी कह सकते हैं,जो संसार को घुमा रही है। 

 संसार में अनगिनत भ्रम हैं,जिन्हें हम सभी पाले हुए हैं।प्रकारांतर से यह भी कहा जा सकता है कि इस भ्रम ने ही आदमी को पाला हुआ है। यह एक ऐसी टटिया है कि इस एक के ही कारण कोई सुखी है तो परम सुखी है और यदि वह दुःखी है भी इसी एक भ्रम के ही कारण है। भ्रम की भंगिमा बड़ी ही निराली है। जिसके अंदर हर प्राणी बजा रहा सुख चैन की ताली है।जिसका यह टूट गया कि बस वही दे रहा गाली है। सच्चे अर्थों में भ्रम जगत का माली नहीं, सच्चा मालिक ही है।वही संसार को चला रहा है। कोई कोई उसे भगवान कहता है और दूसरा निराकार अल्लाह या ब्रह्म के रूप में पूजता है। 

 कोई पत्नी को देवी मानता है और उसकी पूजा करता है ,किंतु जिस पल उसका भ्रम भंग होता है कि यह तो वासना और पैसे की भूखी है,वह उसे चुड़ैल मानने लगता है। जब वह किसी दूसरे के चक्कर में भवरियाँ के सात चक्कर भूलकर चलायमान हो लेती है,तो उसे उसकी प्रियता,सुंदरता,कमनीयता , रमणीयता का भ्रम भेद का सही -सही संज्ञान हो जाता है और उन्मुख से विमुख हो जाता है।भ्रम का यह झीना -सा पर्दा क्या कुछ गुल न खिलाए, कम ही है। इसके जाते ही सुख दुःख में ,शांति अशांति में और भ्रांति क्रांति में तब्दील हो जाती है। इतना झीना कि इसके उस पार क्या है,कुछ भी दिखाई नहीं देता। भ्रम का एक अन्य पर्याय विश्वास हो सकता है,भरोसा हो सकता है। यह दुनिया भ्रम की विविध भंगिमाओं की रंगिमा है,अन्यथा कुछ भी नहीं है। जब तक भ्रम से अपना स्वार्थ सधता है,वह उसी का नाम जपता है,वह उसी के नाम में रमता है, यह गया कि सब चकनाचूर भया।

 स्त्री का साड़ी- मोह एक भ्रम ही तो है कि वह एक बार पहनने के बाद उसे पुराना समझने लगती है।वह नित्य नवीनता प्रेमी है। वह सुंदरता के भ्रम में अपने को संसार की सबसे सुंदर नारी समझती है।जब वह दर्पण के सामने खड़ी हो जाती है,तो स्वर्ग की अप्सरा भी क्या चीज है ? नारी की बेचैनी का सबसे बड़ा कारण ही यह भ्रम है कि वह किसी से कम नहीं। वह क्षण- क्षण परिवर्तन की जीवंत रूप है।पुरुष इस भ्रम में नहीं जीता, वह यथास्थिति में रहना पसंद करता है। यों तो उसके भी अपने अनेक भ्रम हैं ,किन्तु वे सभी भ्रम स्त्री के भ्रम से भिन्न हैं। उसका यह भ्रम ही है कि जब वह पैसे वाला हो जाएगा तो सुखी हो जाएगा। किंतु ऐसा दिन उसके जीवन में कभी नहीं आता और और और के भ्रम में जीवन बिता देता है और एक दिन ऐसा आता है कि सब कुछ इसी धरा धाम पर छोड़कर विदा हो लेता है।

 हर गाड़ी का पहिया इसी भ्रम में घूमे जा रहा है कि गाड़ी वही चला रहा है।जबकि किसी गाड़ी का संचालन यांत्रिकी का समवेत और समन्वित प्रयास है। कोई अकेला पहिया गाड़ी नहीं है : मैं ,न तुम, न वे।पर सब हैं कि अपनी -अपनी धुरी पर सब घूमे जा रहे हैं। भ्रम में जी रहे हैं,चर्बी को घी समझकर पी रहे हैं। भ्रम ही माया का दूसरा नाम है। 'मा' अर्थात नहीं ;और 'या'अर्थात जो । जो नहीं है ,वही तो माया है ,भ्रम है, भरोसा है। भ्रम टूटता ही नहीं, तो विश्वास खंडित क्यों हो। जिसका टूटा कि सुख दुःख में बदल गया, अथवा दुःख सुख में बदल गया ।यही आशा है।भ्रम -भंग ही दुराशा है,निराशा है,हताशा है। भ्रम में एक उजाला है,परन्तु उसके उस पार सघन अँधेरा है। वास्तव में यह भ्रम भी बड़ा कमेरा है कि बहुरूपिया बना करता कहीं उजेरा है और कहीं तमस घनेरा है। 

 आइए इस भ्रम को जानें । पहचानें। और भगवान भला करें कि किसी के विश्वास का भ्रम भंग न हो ,और यदि होना हो तो शीघ्र हो ,ताकि उसे भ्रम के कारण भविष्य सांधकार न हो। इस ओर भ्रम ही भूत है उधर भ्रम ही भगवान है। इन्हीं के मध्य पेंडुलम बना दोलन करता इंसान है। यह प्राण ही उदान है, समान है , व्यान है,और यही अपान है;बस सबका बदला हुआ स्थान है। 

 शुभमस्तु ! 

 12.12.2025●1.15आ०मा० (रात्रि) 

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