रविवार, 14 दिसंबर 2025

झुनझुना [ व्यंग्य ]

 736/2025 


 

 ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 झुनझुना पकड़ा के,पल्ला झाड़ लेते हैं।

 देश के नेता ज़मीं में गाड़ देते हैं।। 

 आदमी का झुनझुने से परिचय कोई नया नहीं है।शैशवावस्था से ही जब माता -पिता ने झुनझुना पकड़ाया तो उसे जानने पहचानने में कोई भूल नहीं हुई।समझदारी आने पर जब पहली बार हमें झुनझुना पकड़ाया गया, हमें तुरन्त याद आ गया कि मम्मी हमें रोने से चुप कराने के लिए झट से झुनझुना पकड़ा दिया करती थीं। झुनझुना तो हमारा संस्कार है।इससे हमारा पुराना नाता है,बड़ा प्यार है। यह तो हमारा पुराना लँगोटिया यार है।इसको जानने और पहचानने में भला भूल कैसे हो सकती है ! इसीने तो हमें रोते से चुपाया है, कितनी ही बार माँ ने हमें बहकाया है।जरूरत पड़ी तो बजाया है और हमें भी बजा के दिखाया है। इस झुनझुने ने ही हमारा ध्यान डायवर्ट किया है।इसे तो बचपन से ही हमने बड़ी अच्छी तरह जिया है। 

 अब इस समय यह फिर हमारे सामने मुखौटा लगाकर आ गया। हमारी मन और बुद्धि पर छा गया। चलो खैर ,फिर से इसके नए रूप को आजमाते हैं और बहुरूपियों के इस बहुरूपिया को क्यों सुहाते हैं। वस्तुतः यह झुनझुना कम धोखा ज्यादा है।अब बड़े होने पर भी ये हमें समझ रहा नादाँ है।ये समझता है कि इसकी झनझनाहट से हम अपने अस्तित्व और अस्मिता को भूल पाएँगे और अब भी इसकी भूलभुलैया में भूल जाएँगे। 

 झुनझुना पकड़ाने वालों में किस- किस के नाम गिनाएं। और किस -किस से दें इनकी उपमाएँ। इन पर तो लिखी जा सकती हैं,बड़ी -बड़ी कविताएँ।झुनझुना दाताओं में पूरी बारात की बारात है।इन सबकी एक ही मंशा है कि हमारे ऊपर इन्होंने लगाई हुई घात है।अधिकारी अपने कर्मचारी पर, व्यभिचारी किसी नारी पर,बेईमान ग्राहक ,बिचौलिया और कराधिकारी व्यापारी पर झुनझुने की घात लगा रहा है।नेता जनता को आश्वासन का झुनझुना थमा कर वोट बटोर रहा है।दलाल दोनों हाथों से पैसा टटोल रहा है।ये सभी झुनझुनेबाज हैं। झुनझुनों के सरताज हैं।एक दूसरे को बहका रहा है।अपने महलों को महका रहा है। 

 झुनझुना एक छल है,छद्म है।प्रापक के लिए सुमन पद्म है और दाता के लिए एक बलि के शीश पर रखा कदम है। ये मोबाइल कंपनियां कोई कम झुंझुनेबाज नहीं हैं। झुनझुना थमाने में कोई किसी से कम नहीं हैं।एक से एक बड़ी बाजी मार लेना ही इनका मक़सद है। झुनझुने में ही तो एजेंटों की रसद है। उपभोक्ता की किंचित सी मदद है। इसी बात का इनका एलान है अहद है।झुनझुने का एरिया बड़ा ही वृहद है।भले ही उपभोक्ता का नहीं इतना बड़ा कद है।अमीर पर कोई फर्क नहीं पड़ता और झुनझुने के बोझ तले गरीब निपट जाता है।पर इससे उन्हें क्या ? वे झुनझुने बजाकर लुभाए जा रही हैं।अपना -अपना इतिहास बनाये जा रही हैं। 

 आदमी जन्म से झुनाझुना प्रेमी तो था ही, अब उसे झुनझुना जीवी बना दिया गया है।बिना झुनझुना पाए वह बहलता ही नहीं,उसका स्टेटस बदलता ही नहीं। झुनझुना के नाम पर उससे कुछ भी करवा लो, वह अहर्निश तैयार है।झुनझुना उसकी दाढ़ से ही नहीं लगा,उसकी दाढ़ी में भी उलझ गया है।अब झुनझुना आदमी की आवश्यकता ही नहीं,अनिवार्यता है। यह एक जरिया भी उसके सुधार का है।भला कौन है जो सुधरना नहीं चाहता।यदि सुधार इसी से होना हो तो हो ले।फिर क्यों देखेगा वह पैरों में पड़े फफोले।इसके लिए उसे तेज दौड़ना पड़े या चाल रहे हौले -हौले। पर उसे चमकाने हैं विकास के नभ में गोले। टीवी, अखबार ,विज्ञापन, सोशल मीडिया सभी पर झुनझुनों की भरमार है। झुनझुना ही तो आज भगवान का अवतार है। इसीलिए भिखारियों से भी बड़ी लगी झुनाझुनों की कतार है।अब यह अलग बात है कि कोई गाए फाग या सावनी मल्हार है। अब फिर से क्या बताएँ झुनझुने से तो आदमी का बचपन का दुलार है। वह उसका एकमात्र लँगोटिया यार है। 

 शुभमस्तु ! 

 14.12.2025●4.30 प0मा0 

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