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[समांत:अन।पदांत:में। मात्राभार:16. मात्रा पतन:शून्य]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नेताहार नहीं है वन में।
सेंधमार की जनता-धन में।।
पकड़ झुनझुना बैठी जनता।
छिपा हुआ क्या नेता-मन में!!
पौष-माघ की तुहिन बरसती।
कान न सुनते कुछ सन-सन में।।
मिले कमीशन हो विकास तब।
जान पड़े तब ही इस तन में।।
किरकिट का मैदान देश ये।
कौन बढ़े आगे नित रन में।।
नारे बंद न होने पाएँ।
भरना यही भाव जन-जन में।।
'शुभम्' बढ़े सब नेता सब आगे।
देश खड़ा प्रभु के वंदन में।।
शुभमस्तु !
15.12.2025●2.00आ०मा०
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