रविवार, 7 दिसंबर 2025

मिनी रावण' [ व्यंग्य ]

 718/2025


 ©व्यंग्यकार

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

 अब तक तो मैं यही देखता समझता आया हूँ कि हर आदमी का एक चेहरा होता है ; किन्तु एक नए शोध के अनुसार यह भी ज्ञात हुआ है कि आदमी के चेहरे के पीछे एक और चेहरा छिपा होता है ,जो प्रत्यक्षतः दिखलाई नहीं देता। वह है ही इसलिए कि दिखाई न दे और छिपा रहे। फिर मेरी सोचदानी में इस सोच का भी शोध किया गया कि मैं तो देखूँ कि क्या मेरे चेहरे के पीछे कोई दूसरा तीसरा या चौथा चेहरा तो छिपा हुआ नहीं है ? पर यह क्या ;मैं ये किस सोच में पड़ गया कि जिस विषय पर सोच रहा था ,वह सोच ही किसी ने सोख ली और अपने चेहरे के पीछे छिपा हुआ चेहरा खोजने लगा ? आए थे हरि भजन को औटन लगे कपास वाली कहावत चरितार्थ हो गई। जिसके चेहरे को खोज रहे हो,उसे खोजो न !यह क्या कि सबको छोड़कर अपने छिपे हुए चेहरे को खोजने लगे। 

 जब अपनी ही बात आई है तो उसे आई- गई क्यों किया जाए ? उस पर भी विचार किया जाए कि क्या मेरा भी ऐसा कोई गुप्त लुप्त सुप्त चेहरा है,जो जब जागता है ,तो असलियत का सत्य आ धमकता है। अब प्रश्न यह भी है कि इन दोनों में असली चेहरा कौन सा है!इस चिंतन से यही निष्कर्ष निकला कि असली तो वही है,जो सबको दिखाई नहीं दे रहा है। जिसे दुनिया देख रही है,वह नकली चेहरा है।

 यही बात जगत सत्य है। सभी दुनिया वालों के लिए है कि यह दृष्ट चेहरा वस्तुतः एक मुखौटा है।जो अंदर वाले वास्तविक चेहरे पर ओढ़ाया हुआ है।यहाँ सब कुछ विपरीत है। जो है वह नहीं है,और जो नहीं है ,वही सत्य है ,असली है,यथार्थ है।उस चेहरे में यद्यपि अलग से मुँह नाक आँख कान न हों, किंतु उसका मन और दिमाग तो पृथक है,दृष्ट चेहरे से भिन्न है,उसका चिंतन ,उसकी सोच,उसकी एप्रोच,पोच नहीं है;बहुत मजबूत है। वही विवेक है। एक अटल मन है,जो अपने निर्णय पर स्थिर है, अविचल है ,हिमाचल है। 

 अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि हमारे आपके सबके ये एक नहीं दो -दो ,तीन -तीन चेहरे क्यों हैं? क्या आवश्यकता पड़ी जो एकाधिक चेहरे लगाने पड़े। अब यह भी समझ में आ गया कि रावण दसकंधर क्यों था ! जब एक आम आदमी दो- दो, तीन -तीन चेहरे का मिनी रावण हो सकता है, तो उस लंकापति का ही क्या दोष कि वह दस शीश का वृहत रावण बन गया। 

 देश और सामाज में रहते हुए व्यक्ति के समक्ष ऐसी अनेक स्थितियाँ परिस्थितियाँ आती हैं कि वह इस मुँह से प्रत्यक्षतः न 'ना' कर पाता है और न 'हाँ' ही कह पाता है, तब उसका पीछे वाला गुप्त चेहरा ही सही निर्णय दे पाता है। आप और हम सभी आज के वही 'मिनी रावण' हैं,जो अपने चरित्र की सीता का अपहरण कर उसे प्रताड़ित कर रहे हैं।उस दसकंधरी रावण को तो जान लिया ,अपने 'मिनी रावण' को क्यों भूल गए? जब उस रावण को जला सकते हो तो तुम्हारा भी मिनी रावण मर्यादा के अनुकूल कुछ होना ही चाहिए। माना कि उस वृहत रावण के दस सिर रहे होंगे,और वे दृश्य भी थे ,किन्तु तुम्हारे तो अदृश्य चेहरे दिखते ही नहीं ! तुम्हारे इस 'एकल रावणत्व' की क्या सजा हो ,इसका भी निर्धारण कर लो। 

 चेहरे के पीछे जितने चेहरे हैं, वे उतने ही बड़े रावण हैं। समाज और देश में नजर दौड़ाई जाए तो इस मामले में नेतागण सबसे आगे हैं। कोई नहीं जानता कि उनके इस दृष्ट (दुष्ट भी) चेहरे के पीछे और कितने चेहरे गुप्त हैं, विलुप्त हैं।ये रावण जो विजयदशमी को पटाखे में तीर चलाते हैं,वे एकाधिक तीर अपने तूणीर में अपने लिए भी सहेज कर रखें । पता नहीं कब सत्य स्वरूप राम का बाण उन्हें अपने आगोश में ले ले और वे जेल की सलाखों के पीछे कबड्डी खेलें। यहाँ जो जितना बड़ा शातिर है,उसके उतने ही छिपे चेहरे हैं,यह अलग बात है कि वे गढ़े हुए गहरे हैं। 

 शुभमस्तु !

 07.12.2025● 1.45 प०मा० .

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