रविवार, 7 दिसंबर 2025

सरसों फूली खेत में [ दोहा ]

 708/2025


           

[ठिठुरन,अलाव,शीत,हेमंत,शिशिर]


   ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                सब में एक

अगहन बीता  पौष में, बढ़ा शीत का कोप।

ठिठुरन भी बढ़ने लगी,घटा भानु का ओप।।

ठिठुरन से खग ढोर जन,बहुत हुए बेहाल।

वस्त्र नहीं यदि गात पर,खड़ा दीखता काल।।


शीत-निवारण   के लिए,जलने लगे अलाव।

मिला ताप-संपर्क  तो, घटता  शीत-प्रभाव।।

पौष -माघ  की   शीत में,  करते  दीन उपाय।

घर में जला अलाव को,पिएं गर्म कुछ चाय।।


कम   कपड़ों   में खेलते, बालक मचती धूम।

उन्हें    सताए शीत  भी,  न्यून   रहे वे घूम।।

वृद्ध   जनों   को शीत से,होता है अति कष्ट।

चलने    में   कमजोर  हैं ,  तत्परता   भी नष्ट।।


अगहन     पूरे   पौष    में, राज  करे हेमंत।

बहुत दूर  है  आज  से, अपना  मधुर वसंत।।

शरद  गई हेमंत  का,  बढ़ने  लगा प्रभाव।

अलसाए  रवि  देव  हैं,  घटा  हुआ  है ताव।।


माघ और फागुन युगल, शिशिर चलाए  चक्र।

सरसों   फूली   खेत   में, होता   समय अवक्र।।

शिशिर शीत जिसने सहा,समझो है वह  पार।

फूलें   फूल    वसंत   के, मधुऋतु   से उद्धार।।


                      एक में सब

ठिठुरन बढ़ती शीत की,जलने लगे अलाव।

शिशिर और हेमंत में, घटता   भानु प्रभाव।।


शुभमस्तु !


03.12.2025●6.00आ०मा०

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