733/2025
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जब से होश सँभाला है,यही सुनता आया हूँ कि सच कड़वा होता है।सच कड़वा होता है। फिर झूठ तो निश्चय मीठा होता होगा।कड़वा और मीठा :यही तो दो स्वाद हैं सच और झूठ के।फिर सोचा रस तो छः होते हैं, फिर शेष चार रसों में से सच खट्टा, तीखा, कषैला या नमकीन क्यों नहीं होता। सच को होने के लिए यह कड़वा रस ही क्यों पसंद आया ,अन्य किसी रस में उसने ध्यान क्यों नहीं रमाया।यदि समाया तो वह कड़वे में ही समाया ! बड़ी ही विलक्षण है इस कड़वे की माया। इस कड़ुवे ने या कहिए सच ने लेखक को को यहीं क्यों उलझाया ? अब इस पर और गहराई से विचार करने का मन आया तो विषय और अधिक गहराया। पर क्या कीजिए ,जहाँ चाह होती है,वहीं आसपास कहीं उससे निकलने की राह भी होती है। अब उसी राह को देखना है कि वह किधर है।किसी तथ्य का शोध करना भी तो एक समर है। देखता हूँ किधर से निकलती है कड़वे रस की सचाई या सचाई की कटुताई । थोड़ा धैर्य धरो भाई !यह बात मेरे जेहन में आई तो कोई यों ही नहीं आई। धीरे - धीरे ही फटेगी इस कटुताई की काई। जो हर आदमी औरत के दिमाग पर पौष मास के कोहरे-सी छाई।
षटरस व्यंजनों में मीठे या मधुर रस को सर्वोपरि माना जाता है ।इसीलिए कोई हलवाई हर एक मिठाई को मीठी बनाता है। जलेबी हो या गुलाबजामुन , रबड़ी हो या कलाकंद, बर्फी हो अथवा पेड़ा सभी मीठी ही होती हैं। इसीलिए इनका नाम मिठाई या मिष्ठान्न पड़ा। मिठाई के बाद नमकीन मानवीय स्वाद की दूसरी पसंद बनी ,अतः कचौड़ी,पकौड़ी, समोसा, बेड़ई आदि का नम्बर लगा। नमकीन के साथ तीखे रस ने भी हाथ मिलाया तो उसे भी चटखारा पसंद मानवीय रसना ने हाथों हाथ उठाया। अब सबसे अंत में बचा कड़वा अथवा कटु जो सत्य की गाँठ में बांध दिया गया। और सच बेचारा कड़वा ही रह गया। सच सबको सहज ही सुहाता नहीं, इसलिए वह हर कहीं जाता-आता नहीं, हर किसी पर डोरे डालकर उसे लुभाता नहीं ,वह अपने स्वभाव में ताता सही, पर जिसने भी सच को सहेजा उसे कहीं भी और कभी भी घाटा नहीं।
जिस दिन सच अपना कड़ुआपन छोड़ देगा ,उस दिन उसे कौन पसंद करेगा ? वह सबके लिए सहज स्वीकार्य नहीं हो सकता।इसलिए उसके चाहने वालों की गिनती गणनीय है।झूठ का चहेता तो सारा संसार है। इसी झूठ को अपनाने के लिए मारामार है।इसीलिए शुद्ध दूध, शुद्ध घी, शुद्ध मसाले, शुद्ध तेल, शुद्ध सोना,शुद्ध चाँदी,यहाँ तक कि शुद्ध आदमी औरत ढूँढ़ पाना असंभव नहीं तो दुष्कर अवश्य है। मीठे लोग तो एक ढूँढो हजार मिलते हैं,एक दो ही नहीं भरे बाज़ार मिलते हैं।झूठे आदमियों का रेला है, बल्कि कहना यह चाहिए कि इने गिनों को छोड़कर ये दुनियां ही झूठों का मेला है। जो कड़ुए हैं ,वे कहीं एकांत में धूनी रमाये रमे पड़े हैं,किसी गोपनीय गुफ़ा की गहराई में गड़े हैं।
सच तो किलोमीटर के पत्थर की तरह अड़ा पड़ा है और उधर झूठ है कि दौड़े चला जा रहा है। वह बेतहासा दौड़ रहा है।झूठ जानता है कि उसके बिना दुनिया सूनी -सूनी है ,वह जो चाहेगा ,वही तो होता है वही होनी है।झूठ की जूठन में भी अजब मिठास है, हर नौकरीपेशा,व्यवसायी और कारोबारी को उसी से आस है। आदमी आदमी का आहार है,घास है। अनादि काल से सच का होता रहा उपहास है। इसीलिए आदमी को झूठ ही रास है। वह झूठ की रास थामे हुए अपने घोड़े बढ़ा रहा है और ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ छलाँग रहा है।गबन,चोरी, बेईमानी, मिलावट,छल छद्म,ठगी, राजनीति, इनमें जो मीठे रस का झरना है, उसके बिना आदमी का जीते जी मरना है। मीठे-मीठे झूठ से उसे आशा है। वह समझता है कि वह सच की कड़ुवाहट में जिंदा नहीं रह सकता। इसलिए उसे झूठ का ही सहारा है और एकमात्र सहारा है। कड़वा -कड़वा थू ! और मीठा -मीठा गप्प।यह वह युग है जहाँ मूर्खों के जनमत से नेता चुना जाता है और जिसके वोट का कुछ मूल्य है ,वह वोट की मशीन चलवाता है। वह वोट ही नहीं डाल पाता। यदि उसके वोट का मूल्य आँका जाता तो लोकतन्त्र में मूर्ख नहीं चुना जाता !
'सत्यमेव जयते' का मूल मंत्र गाया जाता है। पर काले कोट के नीचे क्या-क्या गुल खिलाया जाता है ,सब जानते हैं। अंततः झूठ को ही माई बाप मानते हैं। क्योंकि वह मीठा है।उसे पैसे से खरीदा जा सकता है। सच बिकाऊ नहीं है। वहां तक जाने से सभी डरते हैं। किंतु उधर झूठ पर जान छिड़कते हैं। 'झूठमेव जयते' के नारे अपनाते हैं। क्योंकि इसी से तो उसके प्रगाढ़ नाते हैं। इसलिए झूठ का दामन थामने में किंचित नहीं शरमाते हैं। झूठ मीठा जो है,रबड़ी की तरह गले की गली में गप्प गर्क हो जाने वाला।किंचित मात्र भी किसी ब्रेकर पर नहीं अटकने वाला।
अब तो पता लग गया होगा कि सच का रस और स्वाद कड़वा क्यों है। और झूठ इतना मधुर सचिक्कण रसीला और लचीला क्यों है।बीच के अन्य रस तो पेंडुलम की तरह कभी सच के साथ तो कभी झूठ के साथ दोलायमान हैं।मुख्य रस दो ही हैं कड़वा और मीठा। इधर सच तो उधर झूठ। सच की बन्द है तो झूठ की खुली हुई है मूठ। अरे ओ भले आदमी उठ! उठ!! उठ!!! बदल अपनी करवट और सच और झूठ को पहचान ले। कहाँ है तेरा स्थाई हित इसका संज्ञान ले।
शुभमस्तु !
13.12.2025 ● 11.15 आ०मा०
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