705/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सकल विश्व में मचती हलचल।
शांति हनन होता है हरपल।।
तन-मन से बेचैन आदमी,
उसे न पड़ती पल भर को कल।
गर्त पतन का विषम गहनतम,
रहा प्रगति का अब सूरज ढल।
सिंधु शरण में सरिता प्रसरित,
नित्य निरंतर कलकल है जल।
सीधी चाल न चले आदमी,
वक्र हुए हैं मस्तक के बल।
नगरपालिका वाले सोते,
बहें सड़क पर अविरल ये नल।
'शुभम् ' तीसरा नेत्र खुला है,
निखिल जगत में रुद्र अमंगल।
शुभमस्तु !
01.12.2025●5.00आरोहणम मार्तण्डस्य।
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