मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

सकल विश्व में मचती हलचल [ गीतिका ]

 705/2025


      

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सकल   विश्व   में  मचती  हलचल।

शांति    हनन  होता  है     हरपल।।


तन-मन     से   बेचैन        आदमी,

उसे   न पड़ती पल भर   को कल।


गर्त    पतन  का  विषम   गहनतम,

रहा  प्रगति का अब   सूरज   ढल।


सिंधु  शरण  में    सरिता  प्रसरित,

नित्य   निरंतर   कलकल है  जल।


सीधी   चाल   न    चले     आदमी,

वक्र  हुए हैं    मस्तक     के   बल।


नगरपालिका         वाले      सोते,

बहें  सड़क पर  अविरल   ये  नल।


'शुभम् '   तीसरा    नेत्र   खुला  है,

निखिल  जगत में   रुद्र   अमंगल।


शुभमस्तु !


01.12.2025●5.00आरोहणम मार्तण्डस्य।

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