739/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नेताहार नहीं है वन में।
सेंधमार की जनता-धन में।।
पकड़ झुनझुना बैठी जनता,
छिपा हुआ क्या नेता-मन में!
पौष-माघ की तुहिन बरसती,
कान न सुनते कुछ सन-सन में।
मिले कमीशन हो विकास तब,
जान पड़े तब ही इस तन में।
किरकिट का मैदान देश ये,
कौन बढ़े आगे नित रन में।
नारे बंद न होने पाएँ,
भरना यही भाव जन-जन में।
'शुभम्' बढ़े सब नेता सब आगे,
देश खड़ा प्रभु के वंदन में।
शुभमस्तु !
15.12.2025●2.00आ०मा०
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