सोमवार, 15 दिसंबर 2025

नेताहार नहीं है वन में [ गीतिका ]

 739/2025


      



©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नेताहार    नहीं     है    वन   में।

सेंधमार   की   जनता-धन   में।।


पकड़   झुनझुना  बैठी   जनता,

छिपा  हुआ क्या   नेता-मन  में!


पौष-माघ की   तुहिन   बरसती,

कान  न सुनते कुछ  सन-सन में।


मिले  कमीशन  हो   विकास तब,

जान  पड़े   तब   ही  इस  तन में।


किरकिट   का   मैदान   देश    ये,

कौन  बढ़े  आगे    नित  रन   में।


नारे    बंद       न     होने     पाएँ,

भरना यही भाव    जन-जन   में।


'शुभम्'  बढ़े  सब नेता सब आगे,

देश  खड़ा    प्रभु    के  वंदन   में।


शुभमस्तु !


15.12.2025●2.00आ०मा०

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