710/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हर आदमी की
स्त्री की भी
हर साँस का
खींच कर रखते हैं,
गुप्त चित्र
जिन्हें चित्रगुप्त कहते हैं।
कितनी साँस ली हैं
अब तक,
कितनी और
शेष हैं तब तक
जब तक
वेला विदाई की
न आ जाये।
कर्मों का लेखाजोखा
हर एक का
एक्सरे बना रखा है,
कि जीवात्मा जब कहे
ऐसा नहीं था,
तो वक्त पड़े काम आए।
महालेखाकार
एक ही है
हर जीव का
हर जंतु का
हर चराचर तंतु का
जो आपके
हमारे सबके
कर्मों के
चित्रगुप्त हैं।
नियुक्ति है
भगवान के दरबार में
उनकी लेखनी
और बहीखाता
कभी रुकते नहीं,
पल -पल की
गणना है,
खुले जब
तेरा बहीखाता
उन पर नहीं
बिगड़ना है,
जो बनना
बिगड़ना है,
तेरा ही गिरना -
चढ़ना है।
शुभमस्तु !
04.12.2025 ●1.45 प०मा०
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