706/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
प्रभु का भजन करे सब पाए।
ध्यान मग्न हो प्रीति जगाए।।
भजन भाव में सब दुख नाशे।
मानव जीवन कर्म तराशे।।
राम भजन रत नित हनुमंता।
भजते हैं सब साधु सुसंता।।
इष्ट देव को नित हम ध्याएँ।
ज्ञान यजन में चित्त लगाएँ।।
शंभु-भजन हरि नियमित करते।
हरि के भजन लीन शिव रहते।।
भक्ति भाव को भजन जगाए।
हरि सुमिरन की गंग नहाए।।
प्रभु को सदा हृदय में धारें।
बिना याचना पाप निवारें।।
यही भजन है अच्छा सबसे।
रीति चली है ये युग-युग से।।
माता - पिता और गुरु न्यारे।
भजें इन्हें संतति सब प्यारे।।
भजन पिता - माता की सेवा।
सब सुख दायिनि दात्री मेवा।।
भजन-कीरतन में चित लाएँ।
सुख साधन का साज सजाएँ ।।
बार -बार गुण कथन कराना।
श्रेष्ठ भजन है युगों पुराना।।
'शुभम्' भजन की महिमा गाए।
बार -बार तुमको समझाए।।
भजन बिना भव पार न होना।
योनि-योनि में पड़ता रोना।।
शुभमस्तु !
01.12.2025●6.15 प०मा०
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