552/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
घर-घर में हर भोर में,खनक रहे कप-प्लेट।
चाय पियें नर-नारियाँ, करें दूध से हेट।।
करें दूध से हेट, साथ में बटर ब्रेड भी।
भूरी-भूरी चाय, छोड़ते नहीं बैड भी।।
'शुभम्' बैड की चाय,बैड -टी करती टर -टर।
उठते ही मिल जाय,अगर सबको टी घर-घर।।
-2-
स्वागत में अब चाय ही, बची हुई है शेष ।
बिस्कुट सँग नमकीन भी,बने हुए जन मेष।।
बने हुए जन मेष, सुबह का प्रातराश ये।
और न सस्ता एक, सभी के घर मिलता ये।।
'शुभम्' न और उपाय, द्वार आए अभ्यागत।
गर्म -गर्म है चाय, करें जन इससे स्वागत।।
-3-
धरती जाई चीन की,पेय आधुनिक चाय।
दूध दही प्रिय हैं नहीं, किया मनुज ने बाय।।
किया मनुज ने बाय,छाछ मक्खन क्यों भाए।
भैंस न भायी गाय, रँगीली चाय लुभाए।।
'शुभम्' बौद्ध था भिक्षु,पलक से बूँदें गिरती।
उसी रक्त का पेड़ ,चीन की देती धरती।।
-4-
नारी - नर युवती- युवा,बालक वृद्ध जवान।
नगर गाँव कस्बा नहीं,मिलती चाय जहाँ न।।
मिलती चाय जहाँ न, चाय की टेर मचाएँ।
करें बैड- टी पान, तभी बिस्तर तज पाएँ।।
'शुभम्' चाय का साथ,करे मसले हल भारी।
दीवाना है देश, दिवाने सब नर - नारी।।
-5-
भक्षण करें न चाय की, पत्ती गर्दभ मेष।
बैल बकरियाँ भैंस भी, छुएँ न चाय विशेष।।
छुएँ न चाय विशेष, मनुज ही पीता केवल।
चुसनी से पी चाय,मनुज शिशु लेता है बल।।
'शुभम्' न लेश छिपाव,सुरावत करें न रक्षण।
खग जलचर या ढोर,चाय का करें न भक्षण।।
शुभमस्तु!
11.09.2025● 10.00 प०मा०
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