सोमवार, 1 सितंबर 2025

कुत्ते को कुत्ता मत कहना [ नवगीत ]

 487/ 2025


    

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्


कुत्ते को

कुत्ता मत कहना

दंडनीय है।


कुत्ते को

अधिकार

उसे भी जग में जीना

द्वार-द्वार पर

टुकड़े खाना

विष भी पीना

कुकुर देव

भी पूज्य आज भी

वंदनीय है।


खुलेआम 

जो खेले तो वह

भी स्वतंत्र है

मिला श्वान को

ब्रह्मा जी से

एक मन्त्र है

कुछ भी

उसके लिए 

नहीं अब गोपनीय है।


भैरव का 

वाहन है कूकर

ये विधान है

गली मोहल्लों 

में फिरता

ये श्वान -शान है

क्या कर 

लोगे आप

सभी कुछ  ईश्वरीय है।


लगती 

तुमको शर्म

उसे कपड़े पहनाओ

लगती 

तुमको नहीं

बैठ जब सँग -सँग खाओ

तन से

अपने उठा

उढ़ाओ  उत्तरीय है।


शुभमस्तु !


01.09.2025● 2.30प०मा०

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कुत्तों के अधिकार [ नवगीत ]

 486/2025


       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कुत्तों के

अधिकारों का

अब हनन न होगा।


भले रात भर

भोंकें कुत्ते

नहीं रोकना

भले कार पर

करें विसर्जन

नहीं टोकना

मारे बहुत

ईंट पत्थर भी

उसने भोगा।


बिना वसन के

घूम रहे तो

क्या आफ़त है

मत असभ्य

उनको कह देना

क्या शामत है?

अगर शर्म हो

मानव तुझको

पहना चोगा।


सेठ अमीरों की

कोठी में 

पलते कुत्ते

पाल रहे हैं

ललनाओं को

अपने बुत्ते

देखो कमर

वक्र करके

वे करते योगा।


शुभमस्तु !


01.09.2025●2.00प०मा०

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कुत्ते आदमी पालते हैं [ नवगीत ]

 485/2025


    


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कोठियों में 

आज कुत्ते

आदमी को पालते हैं।


टहलने निकला

सड़क पर

एक कुत्ता बाँध पट्टा

आदमी

पीछे घिसटता

कर रहा

मुँहजोर ठट्टा

देखकर

मुद्रा मनुज की

दर्शकों को सालते हैं।


रोटियों को

सूँघकर वे

छोड़ देते यों पड़ी ही

दूध पीते

ब्रेड के संग 

रोटियाँ लगती सड़ी ही

देखकर

फीमेल अपनी

तिरछी नजर से ताकते हैं।


द्वार पर 

जो अतिथि आए

भौंकते भारी भयंकर

रेकसोना 

से नहाते

गर्व से वे ओढ़ते फ़र

देख 

गलियों के वे कुक्कर

नाक भौं बिचकावते हैं।


जाती नहीं

आदत कभी भी

टाँग वे ऊपर उठाते

देख अवसर

मील पत्थर

मेह से झट वे भिगाते

पूँछ के

संकेत करके

कुछ गृही से चाहते हैं।


सामिष 

मिले भोज

कहना भी क्या है 

चूसें 

वे हड्डी

वे उस पर फ़िदा हैं

एक ही

प्लेट थाली में

भोजन  स्वादते हैं।


शुभमस्तु !


01.09.2025●1.15प०मा०

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हे देव गजानन वंदन है [ गीत ]

 484/2025


      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


प्रथम पूज्य

हे देव गजानन

युगल चरण में वंदन है।


हे विघ्नेश्वर

विघ्न हरो मम

हे कवीश  द्वैमातुर आप

दूर करें

संकट एकाक्षर

सिद्धिदान कर मेटें ताप

मंगलमूर्ति

अखूरथ भूपति

बुद्धिनाथ अभिनंदन है।


भालचंद्र

हे कपिल सुमुख तुम

हे हेरंब गदाधर धीर

मात -पिता के

आज्ञाकारी

एकदंत प्रभु प्रमुख प्रवीर

सदा शुभम हो

मम जीवन में

महकें जैसे चंदन है।


मोदकप्रिय

हे विकट गजानन

ईश गणाधिप शिवनंदन

गौरीसुत  की

नित्य कृपा हो

अघ ओघों का कर खंडन

शूर्पकर्ण 

गजवक्र महाबल

चले तुम्हारा स्यंदन है।


शुभमस्तु !


01.09.2025●11.00 आ०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...