सोमवार, 11 अगस्त 2025

भून भुट्टे खा रहे हैं [नवगीत]

 421/2025



       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


खेत की ही मेंड़  पर

 बैठे हुए हम

भून भुट्टे खा रहे हैं।


 हमने बहाया है 

पसीना बहुत सारा

आज महका

तन नहाया है

हुआ नमकीन सारा

आज चहका

गाय गोरू से बचाया

आज तक ये

स्वाद उसका पा रहे हैं।


हैं अभी कच्चे 

पके दाने 

मगर श्रम रंग लाया

आज मेरा

मन उन्हें लख

रसना रिझाया

तोड़ पेड़ों से

हरे कपड़े हटाए

नाक को भी भा रहे हैं।


एक डिबिया में 

भरी थी आग

वह जलने लगी है

गन्ध भुट्टों की

चिटखती- सी

 किसी रस में पगी है

दाँत से 

कुछ छील

दाने खा रहे हैं।


शुभमस्तु !


11.08.2025●1.00प०मा०

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