471/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
उठा लिया
कटि कसकर बीड़ा
आगे-आगे बढ़ने का।
कितनी भी
कठिनाई आए
निशि-दिन आगे जाना है,
रस्सी पर चढ़
नदी पार कर
पढ़ने का प्रण ठाना है,
नित्य नए
इतिहास रचें हम
नया पंथ है गढ़ने का।
नीले श्वेत
वेश कर धारण
बस्ता भी लटकाएँगीं
चप्पल पहन
पाँव में अपने
विद्यालय हम जाएंगीं
उच्च उच्चतम
शिक्षा लेनी
शिखर उच्च है चढ़ने का।
आज बालिका
कल की नारी
अबला नहीं समझना आप
है जुनून
जज़्बा भी भारी
जोश हमारा प्रबल प्रताप
संघर्षों से
हटें न पीछे
नित्य निरंतर अड़ने का।
शुभमस्तु !
26.08.2025●3.15 आ०मा०
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