459/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जब तक जमीन पर थे
किसी ने देखा ही नहीं हमें
उड़ान जो भरी अंबर में
बस हम ही हम नज़र आए।
कोई नहीं देखता कि
हमने किया क्या है,
किन पथरीली राहों पर चले
और यहाँ तक आए।
कितने फफोले पड़े
मेरे पाँवों के तले
तब कोई नहीं आया कि
गले आकर के मिले।
आज सबको दिखता है सितारा
ऊँचे गगन की छाती पर
एक अदना-सा जब खास बनता है
दुनिया गलहार लिए फिरती है।
पूजा मात्र परिणाम जाता है
न पसीना न प्रयास की पगडंडी
मौकापरस्त है आदमी सदा से
इसे आँखों के तले दिखता ही नहीं।
शुभमस्तु !
23.08.2025●10.00आ०मा०
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