468/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
भार गर्भ का ढोती माता।
संतति की जो भाग्य विधाता।।
कितने कष्ट रात - दिन होते।
फिर भी नहीं जननि-दृग रोते।।
चार सुतों को पिता पालता।
भार उठाता कष्ट सालता।।
चारों सुत क्या भार उठाते?
एक पिता क्या पाले जाते??
धरती माता धैर्यधारिणी।
सब सुख दात्री दुःख वारिणी।।
सबका भार उठाए धरती।
वन बंजर उपजाऊ परती।।
सागर जग का भार उठाए।
बादल जल भर-भर कर लाए।।
वर्षा करे न प्यास सताए।
सींचे फसलें तपन मिटाए।।
शिक्षक पर कम भार नहीं है।
उसके जैसा यहाँ कहीं है??
वही शिष्य का है निर्माता।
लिए खड़ा निज कर में छाता।।
नेता करते नाटक कोरा।
समझें जन को धन का बोरा।।
भार नहीं वे लेश उठाते।
बिना शुल्क सब सेवा पाते।।
'शुभम्' कर्म को भार न माने।
करने में करता न बहाने।।
मातु शारदा का वर पाता।
श्रद्धा से निज शीश झुकाता।।
शुभमस्तु !
24.08.2025●9.30प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें