रविवार, 31 अगस्त 2025

जगत कर्म में लीन है [ दोहा गीतिका ]

 483/2025


      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जगत   कर्म    में लीन है,किंतु न जाने  माप।

कर्म  कौन  सा  पुण्य है ,और कौन सा पाप!!


अपना  सुख  संतोष ही,समझें सभी  महान,

सभी   चाहते  छोड़ना, अपनी  ही पदचाप।


माल   पराया   छीनते,  रटें  राम  का   नाम,

रँगे  गेरुआ वस्त्र वे ,करें दिवस-निशि  जाप।


आपस  के  संघर्ष  में ,लिप्त  हुए  बहु  देश,

बढ़ा  हुआ  है विश्व का,विकट भयंकर ताप।


लिए  कटोरा   हाथ में, माँग  रहा जो  भीख,

अमरीका    की   गोद में, बैठा  करे विलाप।


कहीं   बमों का   शोर  है,आतंकी  अति  क्रूर,

रार     मचाते     देश   में, माँग   रहे कंटाप।


'शुभम्'  देश   आजाद  है , किंतु शांति  है दूर,

लगता भारतवर्ष के, लिखा भाग्य अभिशाप।


शुभमस्तु !


31.08.2025●10.15 प०मा०

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