440/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
विद्युत की धारा
से निर्धन
जड़ ही होते तार।
प्राण वही है
वही आत्मा
जीवन का आधार
पल में प्राण
पलों में खोए
अपना वह संसार
खेल क्षणों का
सारा जीवन
एक वही है सार।
जितनी धार
देह में बहती
उतना मिलता जीवन
अवधि सुनिश्चित
एक प्राण की
ज्यों कपड़े की सीवन
कब तक
नाव चलानी जग में
कब करना भव पार।
कौन जानता
धारावधि को
करे नियंत्रण और
कोई कहे
विधाता उसको
जीवन का सिरमौर
पुनः यहीं पर
आना फिर से
त्याग सभी घर-बार।
शुभमस्तु !
18.08.2025●12.00 मध्याह्न
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