शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

जो होना न चाहे [अतुकांतिका]

 453/2025


          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'



कारण के बिना 

कोई कार्य नहीं होता,

न प्रकृति में

न परमात्मा के यहाँ

न मानवों के जहाँ।


पत्ता भी नहीं हिलता

किसी दरख़्त का

काँटा चलता ही रहता है

सदा वक्त का

पर आदमी का अज्ञान

करता है अभिमान

नहीं लेता किंचित संज्ञान।


दोष का आरोपण

सदा ही किसी अन्य पर

चाहे बादल फटे

या फिसल जाए गिर,

पर कारण का मूल तो

रहता किसी के भी सिर।


छेड़ोगे उसे 

जो छिड़ना न चाहे

काटोगे उसे

जो कटना न चाहे

पाटोगे  उसे

जो पटना न चाहे

फिर तो होगा भी वही

जो होना न चाहे।


धरती पर्वत सागर सरिता

क्या कुछ नहीं जो प्रदूषित 

किसके लिए था

क्या कुछ कर दिया

अपनी विलासिता से

अंदर तक भर दिया,

अब परिणाम भी

तुम्हारे सामने है,

पर इस आदमी को

कोई समझा नहीं सकता

गलत पटरी से

सही पर चला नहीं सकता।


शुभमस्तु !


22.08.2025● 2.45 प०मा०

                   ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...