419/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
समान्त :ऊल
पदांत : अपदांत
मात्राभार :24
मात्रा पतन : शून्य
करता है जो कर्म को,करता भी वह भूल।
बाधाओं के रूप में,मिलते पथ में शूल।।
देश - देश की रटन में,चलते नेता चाल।
स्वयं बो रहे देश की,भू पर पेड़ बबूल।।
अपने ही परिवार के ,हैं हामी जो लोग।
वही तोड़ते हैं सभी, शेष न एक उसूल।।
जनता मानो भेड़ है, चले उलट ही नित्य।
चले न सोच - विचार वे, भटकें ऊलजुलूल।।
आशाएँ जिनसे लगीं, वही चोर शैतान।
रंग-रंग के ओढ़ते, वे ही नए दुकूल।।
स्वयं अँगूठा छाप हैं, वे शिक्षा के मंत्र।
चढ़े मंच पर दे रहे, गले गुलाबी फूल।।
'शुभम्' करें जो देश का ,नित ही बंटाढार।
वही बने भगवान हैं, उड़ती है पगधूल।।
शुभमस्तु !
11.08.2025◆5.15आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें