बुधवार, 27 अगस्त 2025

काटे -चाटे श्वान के [ व्यंग्य ]

 474/2025


 ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 रहिमन ओछे नरन ते,बैर भली नहिं प्रीत।

काटे-चाटे श्वान के, दुहूँ भाँति विपरीत।।

 रहीम के इस नीतिपरक दोहे में कुत्ते को ओछे मनुष्यों का प्रतीक माना गया है।जिस प्रकार एक कुत्ते द्वारा काटना या चाटना, दोनों ही घातक हैं ,उसी तरह ओछे मनुष्यों से बैर करना अथवा प्रेम करना -दोनों ही हानिकारक हैं।किंतु आज के परिवेश में स्थिति बहुत कुछ विपरीत हो गई है।आदमी कुत्ते से भी अधिक घातक हो गया है। आज आदमी से बैर करना अथवा प्रेम करना ;कुछ भी खतरे से खाली नहीं है। कितनी पत्नियाँ ,जो अर्धांगिनी के नाम पर पतिघातिनि बनी हुई हैं। हर चौदह दिन बाद खबर आ जाती है कि किसी एक ने अपने प्रेमी से मिलकर अपने पति को काटकर नीले ड्रम में पैक कर दिया।किसी ने पहाड़ों पर हनीमून मनाने के बहाने उसे परलोक की सैर करवा दी।इन सबसे प्रेरणा लेकर न जाने कितनी ऐसी भी होंगीं जो अपनी योजना को सफलीभूत करने के लिए सुनहरे अवसर की तलाश कर रही होंगीं। 

 काटना और चाटना :ये दोनों विपरीत क्रियाएँ हैं। प्रेम करने वाला कब चाटने के स्थान पर काटने ही लग जाए तो विश्वास और प्रेम का तो विध्वंश ही हो जाए।कुत्ता काटता है तो चाटता भी है।उसका काटना यदि क्रोध है तो चाटना प्रेम है,प्रीति है,लाड़ है,नेह है।कोई चाटते - चाटते ही काट दे, तो कोई किसी का क्यों विश्वास ले और अपना दे।कहीं सास दामाद पर मोहित होती हुई बिल्ली बनी हुई अपनी बेटी का रास्ता काट रही है और दामाद को चाट रही है। कहीं कोई बहन ही अपने प्रेमी के लिए अपने सोदर भाई का कत्ल करवा रही है। कब किसी का चाटना काटने में बदल जाएगा,कुछ भी नहीं कहा जा सकता। 

 कुत्ते वफ़ादारी का प्रमाण होते थे।किंतु आज सब कुछ बदल रहा है।यह सच है कि न आदमी न ही कोई औरत वफादारी के नाम पर इतिहास बना पाई और हालात ऐसे ही रहे तो बना भी नहीं पाएगी।इसलिए किसी नारी या नर से वफ़ा की उम्मीद करना भी बेमानी होगा,निरर्थक होगा।ऐसे में यदि वे चाटते -चाटते काटने भी लगें तो कोई आश्चर्य मत करना। आदमी औरत का एहसान फ़रामोश होना उसका स्वभाव है।वह अपने चाटने के पात्र को कब काट ले या काट दे अथवा कटवा दे ;तो यह कोई अनहोनी बात नहीं होगी।जब यह सब कुछ स्वाभाविक और सहज ही है तो मैं ये पृष्ठ काले क्यों कर रहा हूँ! वह इसलिए कि इस आदमी नामक आदमजात को अपनी आदमियत और वफादारी पर बड़ा गुमान था न ! उसे आईना दिखा रहा हूँ कि कैसे उसकी चाट काट में बदल जाती है। 

 युग बदला है तो आदमी भी बदला है। कुत्ते भी बदल गए हैं।पहले आदमी कुत्तों को पालता था,अब कुत्ते आदमी को पाल रहे हैं। वे उसी के साथ रहते हैं,उसे चाटते हैं और उसका माल चाटते हैं। अब वे स्वामिभक्त हों या न हों;आदमी अवश्य कुत्ताभक्त हो चुका है। अब आदमी नहीं, कुत्ते आदमी को सुबह की सैर कराते हैं। कुत्ता आग- आगे और आदमी पीछे-पीछे। अब आदमी कुत्ते-कुतियों को चाट रहा है। उसे दूध मलीदा खिलाने के लिए उन्हें मना रहा है।आदमी का यह कुत्ता -कुतिया प्रेम उसे प्रेरणा दे रहा है कि यहाँ कोई किसी का नहीं है।जैसे भी चाहो ,मजे लूटो। चाहे वह पत्नी हो या कोई और ;करते रहो जन्नत की सैर।इसी प्रकार नारी के लिए मानक बदले हैं कि जब तक चाट की खुली हाट है ,तब तक ठाठ ही ठाठ है।जिसको चाहे चाट, जो साथ रहे उसे डांट। न बने मामला तो उठा ले छुरी चाकू और देना उसे काट। 

 प्रेरणा शब्द से यह तथ्य की बात निकलती है कि अब आदमी कुत्तों की संगत से कुत्ता बन गया है।इसलिए नैतिकता और सभ्यता की दीवारें गिरा दी गई हैं।कुत्ते भले ही कपड़े पहन लें पर वह तो कपड़ा छोड़ नंगा हो चुका है।क्या नर और क्या नारी ;दोनों में एक ही बीमारी। उनके मन पर नग्नता ने कर ली है सवारी। इसलिए टूट चुकी हैं नीति और नय की चारदीवारी। संगत का असर क्या कुछ नहीं करता। वही इस नए जमाने में इक्कीसवीं सदी में हो रहा है।यह स्वतंत्रता नहीं, स्वेच्छाचार है।ठाठ बाट ही प्रधान है,शेष सब गौण है। पूँछ वाले के सामने बिना पूँछ वाला पूँछ हिला रहा है। कुत्ते के लिए विसर्जन का अपना उसूल है,पर इस आदमी का तो कोई उसूल ही नहीं है।उसके संसर्ग में भी नीति है नैतिकता है,पर आदमी ! राम !राम !!राम!!! उसकी नैतिकता तो घास चाटने नहीं घास चरने गई है।वह जिसे चाटता है ,उसे काटने में भी हिचकिचाता नहीं। 

 शुभमस्तु ! 

 27.08.2025● 1.45प०मा०

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