473/2025
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मेरा देश कुत्ता प्रधान देश है।यहाँ आदमी से अधिक कुत्तों का मान-सम्मान है,ऊँचा स्थान है।कुत्तों की बड़ी ऊँची शान है।आदमी कुत्तों का मेहमान है।आदमी गौड़ है,कुत्ता प्रधान है। मैं केवल कुत्ता -चर्चा ही कर रहा हूँ,किसी आदमी कुत्ते की बात नहीं कह रहा हूँ। आदमी कुत्ता तो इस असली कुत्ते से भी अधिक खतरनाक है।इन कुत्तों की तो बड़ी- सी उभरी -सी नाक है, ये आदमी कुत्ता तो बेनाक है।
कोई आदमी कुत्ते नहीं पालता। आज तो बड़े -बड़े घरों और कोठियों में कुत्ते ही आदमी को पाले हुए हैं।देखा नहीं, सुबह साँझ ये कुत्ते आदमी को सड़कों पर घुमाने निकलते हैं।इसी बहाने वे फारिग हो लेते हैं और जहाँ चाहते हैं आदमी को घसीट ले जाते हैं और किलोमीटर के पत्थर पर एक टाँग उठाकर विसर्जन कर आते हैं। है भला किसी आदमी की ताकत कि वह अपने कुत्ता मालिक की इच्छा का दमन कर सके और जिस जंजीर से वह (आदमी) अटका हुआ है उसे रोक सके। देखने में लगता है कि कुत्ता जंजीर से बँधा हुआ है,किंतु वास्तविकता यह है कि कुत्ता नहीं आदमी बँधा हुआ है। यहाँ वही बात सत्य प्रतीत होने लगती है कि जो होता है वह दिखता नहीं है और जो दिखता है,वह होता नहीं है। यहाँ यही यथार्थ है कि जंजीर से कुत्ता नहीं आदमी बँधा हुआ हुआ है।
आदमी एक कुत्ता भक्त प्राणी है। कुत्ता उसका भगवान है और वह कुत्ते का भक्त है,सेवक है,अनुयायी है,अनुगामी है।आदमी पिछलग्गू है,कुत्ता उसका स्वामी है। आदमी के कुत्तापन और कुत्ते के आदमीपन के अनेक उदाहरण आपको मिल जाएँगे। आदमी कुत्ते का चौबीस घण्टे और बारहों मास का स्थाई सेवक है।वह उसे डनलप के गद्दों में शयन कराता है । उसे नरम और गरम रजाई ओढ़ाता है।लाइफबॉय से नहलाता है। उसे कंघी करता और सुगंधित द्रव्य भी लगाता है।पहले कुत्ते नंगे घूमते थे ।अब कुत्ते कपड़े पहनते हैं और आदमी,औरतें ,और उनके लड़के -लड़कियाँ नंगे घूमते हैं। आज आम आदमी को खाने को दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिलती है और उधर उनके सेवक उन्हें दूध रबड़ी,दाल रोटी और पकवानों का भोग लगाते हैं। सच्चे अर्थों में कुत्ता ही आदमी का इष्ट है,इष्टदेव है।उसके लिए प्लेटों में सजे रहते उसकी पसंद के फल सेव हैं।यह उसका नित्य दिनचर्या का नियम है।
कौन कहता है कि कुत्ता बेजुबान प्राणी है। उसके जुबान भी है और यथासमय भौंकता भी है।पर आदमी ही उसके समक्ष अनाड़ी है,अशिक्षित है, काला अक्षर भैंस बराबर है।जब वह उसकी भाषा समझता ही नहीं,इसलिए उसे बेजुबान और मूक कह देता है।यह तो किसी कुत्ते क्या कुत्ता जाति का घोर अपमान है। वह तो अच्छा है कि किसी कुत्ते ने आज तक किसी आदमी पर मानहानि का मुकदमा (कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट ) नहीं किया। अन्यथा क्या होता ,आप सोच ही सकते हैं।इसमें भी कुत्ते का निहित स्वार्थ रहा होगा , यदि मानहानि के मुकदमे में आदमी जेल में चला जाता तो उसकी सेवा भक्ति भला कौन करता ?इसलिए कुत्ते ने चुप रहना ही उचित समझा। और वह बराबर आदमी से सेवा ले रहा है।
कहते हैं कि जब कुत्ते की कोई खास इच्छा होती है या प्यार उमड़ता है तो वह आदमी के सामने अपनी पूँछ हिलाने लगता है।पर अब तो सब कुछ उलट-पलट गया है ;अब कुत्ते नहीं ,आदमी ही कुत्तों के समक्ष पूँछ हिलाते हुए देखे जा रहे हैं। आदमी कुत्तों के पराश्रित हो गया है। गली मोहल्ले के कुत्तों की छोड़िए,उन्होंने तो अपना स्तर ही गिरा रखा है और जिस- तिस फीमेल कुत्ते के पीछे अपने को बरबाद किए हुए हैं।वे भी बेचारे क्या करें ,उनकी प्राकृतिक माँग उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य कर देती है।
जहाँ - जहाँ आदमी है, वहाँ -वहाँ कुत्ता है।कुत्ता कुछ नर-नारियों की एक अनिवार्य आवश्यकता है। उनकी श्वान-साधना ईश साधना से भी महान हो गई है। कुछ अकेले या अकेलियों के लिए प्राण हो गई है। वे कुत्ते के बिना जी नहीं सकते। कुछ लोगों ने कुत्ता -चरित्र को भरपूर अंगीकार कर लिया है। अपने जीवन में अच्छी तरह उतार लिया है।इसलिए आदमी रूपी कुत्ते के लिए अब सास बहन और अन्य पवित्र कहे जाने रिश्तों में और कुत्ता- रिश्तों में कोई अंतर नहीं रह गया है। इस मामले में उसने कुत्ता जाति को भी पीछे छोड़ दिया है।यदि विश्वास न हो तो नित्य के अखबार,टीवी समाचार और सोशल मिडिया का संचार देख लीजिए।
ये कुत्ता-चर्चा अनंत है। इसका न कहीं आदि है न अंत है। लगता है अब आदमी नहीं,कुत्ता ही सर्वस्व है। कुत्ता दीर्घ है और आदमी ह्रस्व है।गर्दभ हो गया आदमी और कुत्ता आज का अश्व है।कुत्ता आदमी की प्रेरणा है।उसकी चेतना है। उसकी आराधना है। एक हवेली का कुत्ता गली के कुत्ते को गाली दे रहा था ,हट बे आदमी के बच्चे।टुकड़खोर कहीं का।दर -दर ठोकर खाता है ,तब दो बासी बिना चुपड़ी सूखी रोटी पाता है। मुझे देख मुझे, मेरे कितने ठाठ हैं। मेरा व्यक्तित्व ही इतना विराट है कि आदमी देखता मेरी ही बाट है। मैं उसका मालिक हूँ ,वह रहा मेरे होठ चाट है। अब मैं उसके पीछे नहीं, वही है मेरे पीछे। मैं ऊपर हूँ,तो वह बाट जोहता है नीचे। वह कुत्ता भक्ति में इतना अंधा है कि जो मैं चाहता हूँ,सब कुछ कर रहा है स्वनेत्र मींचे। बारह वर्षों के बाद घूरे के भी दिन बदलते हैं ,तो हम कुत्तों के क्यों नहीं बदलेंगे ! आओ तुम भी हमारे साथ नारा लगाओ : भौं sss....
शुभमस्तु ! 27.08.2025● 10.45 आ०मा०
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