394/2025
समांत : आई
पदांत :अपदांत
मात्राभार :16.
मात्रा पतन :शून्य
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
शुचि सावन की सद शुभताई।
ऋतु-रानी वर्षा ऋतु आई।।
झर-झर झर-झर झड़ी झरी है।
बदली बादल के सँग धाई।।
कहाँ गईं वे मृदुल मल्हारें।
गूँजा करती थी अमराई।।
वीरबहूटी विदा हो गई।
दिखती एक न कहीं गिजाई।।
करते टर्र-टर्र नर मेढक।
प्रिया मेढकी पास बुलाई।।
जुगनू लालटेन ले धाए।
कहें चाँद की कमी मिटाई।।
'शुभम्' रात में चमके बिजली।
सही न जाए विरह जुदाई।।
शुभमस्तु !
04.08.2025● 12.45आ०मा०
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