सोमवार, 4 अगस्त 2025

वर्षा ऋतु आई [सजल]

 394/2025

    

       

समांत        : आई

पदांत         :अपदांत

मात्राभार     :16.

मात्रा पतन   :शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

  

शुचि सावन की सद  शुभताई।

ऋतु-रानी    वर्षा    ऋतु आई।।


झर-झर झर-झर झड़ी झरी है।

बदली बादल   के  सँग   धाई।।


कहाँ गईं   वे   मृदुल   मल्हारें।

गूँजा   करती   थी    अमराई।।


वीरबहूटी    विदा    हो    गई।

दिखती एक न कहीं  गिजाई।।


करते    टर्र-टर्र     नर   मेढक।

प्रिया  मेढकी   पास    बुलाई।।


जुगनू  लालटेन     ले    धाए।

कहें चाँद  की   कमी  मिटाई।।


'शुभम्' रात में चमके बिजली।

सही न   जाए   विरह  जुदाई।।


शुभमस्तु !


04.08.2025● 12.45आ०मा०

                 ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...