गुरुवार, 21 अगस्त 2025

बाबली बनाम बाबरी [अतुकांतिका]

 445/2025


          


©शब्दकार

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जब आदमी 

बाबरा हो सकता है

तो वे बाबरी

क्यों सम्भव नहीं हैं !

संभावना थोड़ी नहीं

पूरी-पूरी है।


पहले समय में

किलों  में

जमीन में

बाबलियाँ होती थीं

आज उनका 

इतिहास बता रहा है।


आज घर-घर में

बाबलियाँ न सही,

बाबरियों की भरमार है,

वे सड़क पर

पहाड़ों पर

नदी की धार में

दुस्साहसिक

रीलें बनाती

दिख जाएंगी।


बाबली में 

सीढ़ियों से

नीचे जाना पड़ता था,

बाबरी क्या 

चमत्कार कर दे

कुछ पता नहीं !

उसे सीढ़ी नहीं चाहिए

सीधी उड़ान 

जो भरनी है,

आत्म प्रदर्शन की

माँग पूर्ण करनी है,

समय -समय की

बात है।


शुभमस्तु !


21.08.2025● 11.15 आ०मा०

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