रविवार, 24 अगस्त 2025

परिश्रम ही सफलता है [अतुकांतिका]

 463/2025


        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


परिश्रम यदि स्वभाव हो

फिर किस चीज का

अभाव हो,

सफलता

 चूम लेगी चरण

यदि कठिन परिश्रम की

नाव हो।


परिजीवी बनकर

कितना जिओगे

एक दिन

मच्छर की तरह

मसल दिए जाओगे।


पसीने की सुगंध

जो लेता है

वही साफल्य के

शिखर छूता है,

यही सत्य है,

अकाट्य तथ्य है।


कामचोर जो कहलाए

बातों से मन बहलाए

बदनामी का एक दाग

लगना ही लगना है,

इससे बचकर 

कहाँ जाना है।


न जोंक बनो

नहीं दंशक मच्छर

कितने दिन चाभोगे

मुफ्त की शक्कर,

अपनी कथनी को

करनी बना डालो,

सफलता तुम्हारे

चरण चूमेगी।


शुभमस्तु !


24.08.2025●8.15आ०मा०

                ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...