460/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बजाओ घण्टे घड़ियाल
अथवा मुनादी कर दो
लगा दो भाट चारण कितने
अखबारों को भर दो।
कौन सुनता है इनकी ध्वनि
ध्वनियों में ध्वनि है परिश्रम की
छा जाती है चमक जिसकी
अम्बर में ज्यों रवि किरणों सी।
पसीने की बूँद जब टपकती है
ये धरा भी महक-महक उठती है
पसीना आँखें ही नहीं कान भी खोले
दुनिया चमत्कार कह उठती है।
ये रास्ते भी मंजिल बनेंगे तभी
जब पिपीलिका की तरह गिरोगे उठोगे
धरा से अम्बर तक का सफर है
चलना ही चलना ठान रखा है।
आ पसीने में पाटली खुशबू भर दें
जमाने की ख़ातिर ऐसा कर दें
जमाने में हम रहें या नहीं भी रहें
इस माटी के देह को सोना कर दें।
शुभमस्तु !
23.08.2025●10.15आ०मा०
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