429/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मौसमी
इन मेंढकों ने
नाक में दम कर रखा है।
साँझ से
टर्रा रहे हैं
तालाब को सोने न देते
रात भर
सोते न पल भर
नींद में खोने न देते
भोर का
जागा उजाला
शोर तो कम कर रखा है।
एक मेढक
दूसरे की
कर रहा भारी प्रशंसा
मछलियों से
नेह है क्या
बदनीयती की है मंशा
टर्र पों- पों टें
मची है
फोड़ने को बम रखा है।
गुजर जाए
ऋतु सुहानी
एक भी दिखना नहीं है
नाक
माटी में घुसाएं
ढूँढ़ना मेढक कहीं है ?
क्वार आते ही
सभी ने
टर्र को सम पर रखा है।
शुभमस्तु !
13.08.2025●9.30 आ०मा०
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[10:31 am, 13/8/2025] DR BHAGWAT SWAROOP:
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