सोमवार, 18 अगस्त 2025

वे जनता नहीं [ नवगीत ]

 438/2025

     

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


वे जनता नहीं

सदा रहते वे

जनार्दन हैं।


उतरना नहीं

 आता उन्हें

ऊपर  से नीचे

चलना नहीं 

सीखा कभी

किसी के पीछे

आगे-आगे 

चलना है

करना बस मर्दन है।


दिया नहीं

उजाला कभी

लिया ही लिया है

पिलाया नहीं

बिंदु एक

पिया ही पिया है

सृजन नहीं

जाना कभी

किया बस अर्जन है।


आम नहीं

कह देना 

रहे  सदा खास हैं

चुसने का

काम नहीं

चूसें यही   रास  है

टकसाल 

अपनी ही

नोटागार का सृजन है।


शुभमस्तु !


18.08.2025● 10.आ०मा०

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