389/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आओ जातिवाद की बो दें
गुठली अपने चारों ओर।
बस में बैठें एक जाति के
एक जाति की दौड़ें ट्रेन
जो न चला पाएँ बस ट्रेनें
उनका चलना कर दें वैन
उड़ें हवा में वायुयान भी
जातिवाद तब हो घनघोर।
अपनी जाति देख कर खाएँ
होटल में सब भोजनआप
अन्य जाति को नहीं खिलाएं
बनें जातिवादी के बाप
विद्यालय भी एक जाति के
दें प्रवेश बच्चों को ठौर।
भगवानों को जाति धर्म से
आपस में सब बाँटें हम
राम श्याम के मंदिर में बस
घुसें वही जिनमें हो दम
गली मुहल्ले नगर गाँव में
आए जातिवाद का दौर।
अश्व लगे अश्वों को प्यारा
गधा कहे गर्दभ को डैड
लड़ें परस्पर सभी विरोधी
ट्रेड मार्क भारत में मेड
जंगल ही जंगल हो भीषण
लड़ें परस्पर करते शोर।
इंसानों की नहीं जरूरत
उचित यही होते खग ढोर
मानव कहलाना क्यों इनको
बसा सभी के मन में चोर
सूरज नहीं ज्ञान का उगता
नहीं हो सकेगी यों भोर।
शुभमस्तु !
02.08.2025●3.30प०मा०
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