414/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कुछ भी शुभ या
अशुभ नहीं है
अखबारों में तो छपना ही है।
राजनीति की
उठापटक या
ट्रम्प पुतिन छल छंद
राहुल की राहुलगीरी भी
खुदे सड़क में खंद
बादल फटे
कहीं पर्वत पर
खुशहाली तो सपना ही है।
नेताजी की
कुतिया खोई
कहीं भयंकर बाढ़
गई प्रेमिका
प्रेमी के सँग
जिससे प्रेम प्रगाढ़
सास रीझती
दामादों पर
कलयुग को कुछ करना ही है।
अखबारों में
नौकरियों का
कोई नहीं अकाल
युवा सड़क पर
जूते घिसते
टपक रही मुख राल
लोकतंत्र को
जीते नेता
जनता को तो कँपना ही है।
लाखों के
विज्ञापन देखो
भरे - भरे हैं पेज
रेल और
बस दुर्घटनाएँ
खबरों से लबरेज़
भरे जेठ में
पेड़ रोपते
पेड़ों को तो मरना ही है।
देशी और
विदेशी खबरें
खेलकूद की बात
कारोबार
तेल सोने का
सूखा या बरसात
अरबों की
बढ़ रही कमाई
निर्धन को तो छलना ही है।
शुभमस्तु !
09.08.2025●9.30आ०मा०
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