401/2025
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दुनिया में बहुत सी मीठी चीजें अस्तित्व में हैं।जैसे गुड़,शक्कर, शहद,वाणी और चीनी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।इन सबमें यदि सर्व प्राथमिकता की बात की जाए तो वाणी से भी पहले चीनी बाजी मार ले जाती है।एक चीज और भी है जो माधुर्य के कम्पटीशन में चीनी को भी पछाड़ कर आगे पहुँच जाती है।उस चीज की ओर आपका ध्यान कभी भले गया हो अथवा नहीं ;किन्तु मेरी मत्यानुसार वही सबसे मीठी है।यहाँ तक कि हलवाई की कोई मिठाई भी उसके सामने टिक नहीं पाती। वह सर्व मधुर,प्रियता में प्रियतर,मानव मात्र की रहबर,कुश्ती में जबर (सबल), दिल और दिमाग के लिए तर, न तो नारी और न ही नर,न कोई अगर न मगर, बस एक ही नाम जुबाँ पर आता है :'नुक्ताचीनी' ।
'नुक्ताचीनी' मानव मात्र का एक प्रिय से प्रियतर शग़ल है।इस क्षेत्र में क्या नर और क्या नारी ! वास्तविकता तो यही है कि यहाँ भी है नर से भारी नारी। थोड़ी बहुत नहीं ,बहुत ही भारी। यदि माताएँ ,बहनें, जियां,मौसियाँ,चाचियां और स्वपत्नी भी बुरा न मानें तो कहूँगा कि वे नुक्ताचीनी में सिरमौर हैं। गली,मुहल्ला,नुक्कड़,पनघट,बाजार,घर,घूरा ;सब जगह नुक्ताचीनी का है साम्राज्य भरापूरा।नुक्ताचीनी के बिना उनकी दाल रोटी हजम नहीं होती। अब बहू हो या सास, नुक्ता चीनी है सबकी प्रियतर खास,उन्हें कभी आती भी नहीं इसमें बास।नुक्ताचीनी उन्हें खुशबू छोड़ती है। वे कभी भी किसी भी हालत में इससे मुँह नहीं मोड़ती हैं। जहाँ तक हो सके वे इससे नाता जोड़ती हैं।
नुक्ताचीनी एक बिना पैसे का व्यापार है। इसमें न दमड़ी का हर्रा लगे न धेली की फिटकरी।नुक्ता चीनी एक रिफ्रेशर है।इसमें न कोई प्रेसर है और न ही किसी का डर है। यह निर्द्वन्द्व रसास्वादन कराता है।सुनाने वाला/वाली भी खुश और सुनने वाली /वाला भी नहीं नाखुश।यह माधुर्य कानों कान यात्रा करता है। इससे कभी किसी का पेट नहीं भरता है। भगवान की कथा श्रवण काल में भले नींद के झोंके आने लगें ,किन्तु यहाँ तो आई हुई नींद भी रफूचक्कर हो जाती है। नुक्ताचीनी बीमारों की दवा है।छोटी मोटी बीमारियाँ तो हो जातीं पल भर में हवा हैं। नुक्ताचीनी का हर वक्त ही गर्माता रहता करिया तवा है।
नुक्ताचीनी एक अनछपा अखबार है। यह नारी मात्र का सत्रहवाँ शृंगार है।उनके हृदय का प्यार है,दुलार है। आँखों में छाया रहने वाला बुखार नहीं,खुमार है।हर नुक्ताचीनी की अलग - अलग मिठास है। यही नहीं एक विचित्र प्रकार की भूख है,प्यास है।इससे दिमाग और दिल की खिड़कियों से फैलता उजास है। नुक्ताचीनी कर्ता/कर्तरी/कर्त्री का सबल प्रयास है कि उसके मिठास का पूरा- पूरा साधारणीकरण हो सके।न श्रवण कर्ता/कर्त्री चैन से जागे न सो सके।
जिस प्रकार चाय या दाल - सब्जी के लिए दालचीनी ,वैसे ही आम वार्ता के लिए है नुक्ताचीनी ! देती है खुशबू भीनी - भीनी।जैसे कानों को लग रही हो एसी की हवा झीनी -झीनी। ये कोई चीनी की चाय नहीं है ,जो जबर्दस्ती पड़े पीनी।हर नुक्ताचीनी में मधुरता होती ही है नवीनी। नुक्ताचीनी की मिठास का आलम ही ऐसा है कि जो भी इसका स्वाद चख ले नहीं करता कभी ऐसा है वैसा है। बस चुप-चुप सुनते जाना है।कभी कोई विरोध या आपत्ति नहीं लाना है। नुक्ताचीनी तो मिठास का खजाना है। गन्ने की चीनी की तरह यह नॉनवेज नहीं है (चीनी की सफाई के लिए हड्डी का चूर्ण अनिवार्यतः मिलाया जाता है इसलिए इसे नॉनवेज कहा गया है।),भले ही नुक्ताचीनी की बात दस फीसद सही- सही है। नुक्ताचीनी एक ऐसी बही है, जो कभी समाप्त नहीं होती और बाकी बात फिर करेंगे ,कहकर वहीं रोक दी जाती है। मैं किसी नुक्ताचीनी की कोई नुक्ताचीनी नहीं कर रहा, वही कह रहा हूँ, जो पानी में बहा। यदि न मानें तो स्वयं अनुभव कर लें, सुनते-सुनते कान पक जाएँ तो कहीं और धर लें।
शुभमस्तु !
05.08.2025●11.00 आ०मा०
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