427/2025
[पत्थर,पतित,गोदान,विदुर,व्यापार]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
श्रद्धा के सौजन्य से, पुजता पत्थर एक।
प्रतिमा में नव रूप ले,होते विनत अनेक।।
पत्थर बदले खाक में, किंतु न नर-पाषाण।
काम न आए देश के,करे न अपना त्राण।।
पतित चरित का आदमी,उसे न जग में ठौर।
थू-थू हो सर्वत्र ही, आम बिना ज्यों बौर।।
पर्वत से जो पतित हो,बच सकते हैं प्राण।
गिरता अपनी आँख से,उसे न जग में त्राण।।
प्रेमचंद लमही बसे, लिखा ग्रंथ गोदान।
मिली अमरता सृजन से,महिमा का वरदान।।
पुण्य प्राप्ति के हेतु से, करते जन गोदान।
धर्म सनातन श्रेष्ठ है, चिंतन चारु महान।।
विदुर नीति यदि मानते,बनता क्यों रणक्षेत्र।
भीतर से जन्मांध थे, कुरुराजा के नेत्र।।
चले नीति से आदमी, दिग्दर्शक है नीति।
विदुर कहें सुन मूढ़ मति,भय बिन कैसी प्रीति!!
चले नीति पर आदमी ,कर सकता व्यापार।
रुचि जागे यदि पाप में,करें मिलावट यार।।
नमक दाल में खाइए, नहीं नमक में दाल।
सफल सही व्यापार हो,मानव बने मराल।।
एक में सब
विदुर नीति व्यापार में, करे नहीं गोदान।
पत्थर दिल ये आदमी,होता पतित खदान।।
शुभमस्तु !
13.08.2025● 6.00 आ०मा०
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