393 /2025
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
यदि किसी कुत्ते को खाने के लिए कुछ दिया जाए ,तो खाने से पहले वह सूँघकर जान लेता है कि वह वस्तु खानी चाहिए अथवा नहीं।इसके विपरीत मनुष्य ही एकमात्र ऐसा जंतु है जो,इस बात का पूर्ण विवेक होने के बाबजूद खाद्य अखाद्य का कोई परहेज़ नहीं करता। उसे सब कुछ हज़म हो जाता है।यद्यपि वह अच्छी तरह जानता है कि रिफाइंड से बने हुए व्यंजन खाने से उच्च रक्त चाप ,मधुमेह,किडनी रोग,यकृत रोग आदि का खतरा है ,फिर भी वह रिफाइंड में सिंके हुए पूड़ी,मालपुआ,पराँठे,कचौड़ियाँ, पकौड़ियाँ,मंगौड़े,जलेबी,समोसे, आलू टिक्की,पानी पूरी,छोले भटूरे,बेड़ई, बर्गर,पीज़ा,मोमोज़, चाऊमीन, सैंडविच आदि को चटखारे ले लेकर खाता है।वह जानता है कि ये सब जहर में तले पकाए गए हैं और शरीर के लिए हानिकारक हैं,फिर भी अपने आप अनेक असाध्य रोगों को आमंत्रित कर रहा है। जहर ही खा रहा है,और दूसरों को जहर के कहर से मार देने का उपक्रम कर रहा है। इन जहर की दुकानों से बाजार पटे पड़े हैं। हलवाइयों की इन रंग बिरंगी मिठाइयों की दुकानों में यह जहर ही तो बेचा जा रहा है।बड़े - बड़े विवाह समारोहों की दावतों , भागवत के मालपुओं, सब्जियों, दालों ,अनेक देशी विदेशी व्यंजनों में एक रिफाइंड ही वह जहरीला तत्त्व है,जो मानव जाति को आत्महत्या के लिए उकसा रहा है कि आ बैल मुझे मार।
एक समय ऐसा भी था कि डी डी टी के छिड़काव से मच्छर मर जाते थे। आज उनकी इम्युनिटी पावर इतनी अधिक बढ़ गई है कि अनेक ज़हरीली अगरबत्तियों, आल आउट के रासायनिकों, कॉयलों, तेलों आदि का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता।यही स्थिति आदमी की हो गई है कि रिफाइंड और पाम आयल जैसे विषैले पदार्थों से भी उसे कुछ नहीं होता।होता है,अवश्य होता है। ये सभी धीमे जहर हैं।जो धीरे -धीरे उसे घातक बीमारियों के कुँए में धकेल रहे हैं। किंतु वह बेखबर है। होली दीवाली रक्षाबंधन आदि पर्वों पर वही जहर खा रहा है,वही खिला भी रहा है।
किसानों और बागवानों को अधिक कमाई का लालच उन्हें जहरीले रसायन छिड़कने के लिए प्रेरित कर रहा है।इससे हमारे फल,सब्जियाँ,अन्न,दालें,यहाँ तक कि रोज पीए जाने वाला पानी भी प्रदूषित है। यह अज्ञान नहीं है। यह आत्मघात है। जानते हुए जो विष भक्षण करे ,उसे और क्या कहें। सृष्टि में सर्वाधिक बुद्धिमत्ता का दम्भ भरने वाला आदमी मूर्खता की पराकाष्ठा के दूसरे छोर पर खड़ा हुआ अपनी मृत्यु का इन्तज़ार कर रहा है।
जो जितना बड़ा बुद्धिमान होता है,वह उतना ही पहले दर्जे का मूर्ख भी होता है। ऐसी ही कुछ स्थिति आज के लोभी और जीभ के लालची आदमी की भी है।बड़े -बड़े उद्योग और कंपनियां अपनी मोटी कमाई के लक्ष्य से अनेक जहरों का निर्माण कर रही हैं। वे मानव जाति की सबसे बड़ी दुश्मन हैं। उन्हें क्या कोई मरे या जिए।उन्हें तो अपनी कमाई से काम।लाखों करोड़ों के विज्ञापन इस आदमी नामक जंतु के विनाश के लिए ही तो बनाए जा रहे हैं,जिन पर सरकारों का भी कोई नियंत्रण नहीं है।उन्हें राजस्व चाहिए,वह उन्हें मिल ही रहा है।उनका वोटर जिंदा रहे या मरे !उन्हें क्या ?
आज आदमी जहर का कीड़ा बनकर जी रहा है। वह जहर खाकर जीवित है और मेहमानबाजी में भी वही चला रहा है।मानवीय जहरों की इतनी बड़ी सूची है कि एक महाग्रंथ लिखा जा सकता है।इन जहरों के सामने बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, गुटका ,खैनी और सोमरस शराब के जहर भी हल्के पड़ गए हैं। मच्छरों की तरह आदमी की इम्युनिटी भी बहुत सशक्त हो गई है। आज जहर जिंदाबाद है,आदमी मुर्दाबाद है।वह जहर प्रेमी है। उसके अपने अंदर भी इतना जहर भर गया है कि आज आदमी आदमी को खा रहा है,फिर भी अमर है। गुबरैले को रात दिन गोबर वास करने से उसकी बदबू भी उसे विचलित नहीं करती।इसी प्रकार का हाल इस वर्तमान आदमी का है। जब जहर ही उसका घर है, वही खाना है,उसी को ख़िलाना है। तो जहर के कहर से बच कर भी किधर जाना है! जहर आज सहज स्वीकार्य है,क्योंकि वह अंगीकृत है।इसलिए मानव के लिए पंजीकृत है।जहर का आदमी से साधारणीकरण हो गया है।इसलिए जहर ही उसे रस दे रहा है।वही जीवन दे रहा है।अतः उसे आज जहर खाने के लिए सुझाव दिया जाता है कि जहर खाएँ ,खूब खाएँ और इष्ट मित्रों को भर-भर खिलाएं।
शुभमस्तु !
03.08 2025● 11.45आ०मा०
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