436/2025
समांत : इया
पदांत : है
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
फल मिलता जो कर्म किया है।
ज्योति संग ज्यों जले दिया है।।
यों तो सब ही जीते जीवन।
पर उपकारी सदा जिया है।।
अपना रंग सोच दिखलाए।
जिसका निर्मल सबल हिया है।।
आजीवन जो साथ निभाए।
सत्य अर्थ में वही तिया है।।
पति-पत्नी का युगल रूप है।
पत्नी पति की सबल चिया है।।
राम कहीं हों महल-वनों में।
उर में उनके सदा सिया है।।
लव कुश 'शुभम्' श्रेष्ठ संतति हैं।
श्रेष्ठ कर्म के संग क्रिया है।।
शुभमस्तु !
18.08.2025● 6.45 आ०मा०
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