रविवार, 31 अगस्त 2025

धारा [ चौपाई ]

 481/2025


                  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बहती  जहाँ    काव्य  रस   धारा।

मिले     वहाँ     जान्हवी- किनारा।।

काव्य -  नदी    में     चलो   नहाएँ।

श्रोता  कवि जन  सब   तर   जाएँ।।


अविरल      धारा     बहती   जाए।

किसे   नहान    नहीं    तब   भाए।।

शब्द    भाव   में   कवि  रस भरता।

विधि का  रूप   सृजन   में  धरता।।


दोहा           कुंडलिया       चौपाई।

तुलसी      कबिरा    सूर    सुनाई।।

पंत      प्रसाद        महादेवी     की।

धारा    बही       काव्य  सेवी  की।।


कोई    ग़ज़ल    गीतिका     लाया।

धारा का   प्रवाह      शुभ  आया।।

छंद    सवैया      अति     मनहारी।

सुने     सोरठा    शुभ     उपकारी।।


व्यंग्य  काव्य में   'शुभम्'   रमा   है।

लेखों    का   क्या  अजब समा है!!

बहे  वहाँ     भी      कविता  धारा।

हास्य-व्यंग्य      का   चढ़ता  पारा।।


आदि काल से  अब   तक   कितने।

कवि    साहित्यिक    आए   इतने।।

अलग  सभी    की   कविता- धारा।

मानस  भोजन   का   कवि   तारा।।


जहाँ    काव्य - धारा    बहती   है।

संस्कृति   की  गाथा    कहती    है।।

रहे  अगर      जिंदा   कवि - धारा।

बचा  रहे      यह      देश    हमारा।।


शुभमस्तु !


31.08.2025●9.15 प०मा०

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