399/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अन्नदाता को नमन
शुभ धन्यता है आपसे।
गाँव से कुछ दूर
खेतों में भरा जल
कृषक ले अर्धांगिनी
उसका वही बल
पौध ले कर धान की
करता हुआ-सा जाप से।
बीच पानी के खड़ा
झुक रोपता है
पौध की गड्डी बना
भू सौंपता है
दूरियाँ तय कर रहा
बिन नाप से।
पास में बेटा खड़ा
टाई लगाए
करता नहीं कुछ काम
बातें ही बनाए
कोरी वकीली शान
कहे कुछ बाप से।
देख हरियाली
हुआ मन तृप्त है
हृदय का संतोष भी
अव्यक्त है
मुक्त होता व्यक्ति
मन के पाप से।
शुभमस्तु !
05.08.2025● 6.45आ०मा०
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